
खेत के रास्ते
मैंने सुनीं
ग्वाले के बांसुरी
बांसुरी से याद आई
कान्हा की बांसुरी
बांसुरी की भाषा को
मान्यता की नहीं जरूरत
राग-रंग, हर्ष और दुख की
होती सदैव एक ही भाषा.
*****
बच्चे भगवान होते हैं!
बच्चा अनजान होता है
रीत-कायदा
कब जाने!
बच्चा नासमझ होता हैं
दुनियादारी
क्या समझे!
बच्चे नादान होते हैं!
बच्चे भगवान होते हैं
*****
मन्नत
मैंने मांगा
सांवरे से
केवल और केवल
तुमको
तुम्हारे बहाने
सांवरे ने
सौंप दी मुझे
सारी दुनिया
सचमुच
अब मुझे
तुम्हारी तरह
अच्छी लगती है
यह दुनिया.
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पाठशाला
तीस वर्ष पुरानी
दीवारें भी
पढी-लिखी है यहां
कान पक गए
अ अनार
आ आम की टेर सुनते
सातवें सुर में
वर्णमाला का बोलना
मंत्रों से करता है होड़.
यह पाठशाला
कैसे कम है
किसी मंदिर से ?
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मेरा घर
दीवार से सटाकर रक्खी है
पुरानी चारपाई
झूले खाती मेज पर
लगा है किताबों का ढ़ेर
दीवारों पर लटक रहे हैं
नए-पुराने कलैंडर
आले में पड़ा है रेडियो
खूंटियो पर टंगे है कपड़े.
परंतु
आठ बाई दस फ़ुट का
मेरा यह कमरा
साधारण तो नहीं है
ब्रह्मा होने की
मेरी ख्वाहिशों का
साखी है.
इसकी आबो-हवा में
पसरी हुई है
कई अनलिखी
कालजयी कविताएं
जो मुझे तलाश रही हैं.
अनुवाद- स्वयं कवि द्वारा
4 टिप्पणियाँ
जमीन से जुडी कवितायें हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचनायें, बधाई।
जवाब देंहटाएंफूहड मनोरंजन और मांग के अनुरूप आपूर्ति ने सद्मुल्यों और सामाजिक सरोकारों के मार्ग को अवरुध कर दिया है ! जिससे हमारी संस्कृति का स्वरूप विकृत होना लाजमी है ! परंतु आप जैसे कुछ लोग अभी भी इसे बनाये रख्नने के लिए जूझ रहे हैं, यह देख कर अच्छा लगा ! विचार का व्यापक फलक तैयार करने की आपकी कोशिश को नमन एवं साधुवाद !
जवाब देंहटाएंरवि पुरोहित
rajasthan ki mitti ki mahak se aaplaavit sundar kavitaae
जवाब देंहटाएंmukesh ranga
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.