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स्वतन्त्रता-रवि [कविता] - प्रदीप भारद्वाज “कवि”

स्वतंत्रता अम्बर में जो रवि का प्रकाश है .
वो भारती, प्रभावती का सुत सुभाष है.

वो देश-भक्ति भावना का गहरा सिन्धु था.
माँ भारती की वीरता का मान बिंदु था.
नरपुंगवों का शौर्य था वीरों का जोश था.
शंख पाञ्चजन्य का वो क्रांति-घोष था.
अंग्रेजी राज का किया जिसने विनाश है.
वो भारती, प्रभावती का, सुत सुभाष है.
स्वतन्त्रता…………………………है.

स्वतन्त्रता का क्रांति-गीत जिसने गाया था.
संगीत युद्धभूमि का जिसने बजाया था.
तब चेतना के सुर यहाँ, झंकारने लगे.
जन-जन के शौर्य रक्त में संचारने लगे.
आजाद-हिंद फौज का, जो क्रांति-रास है.
वो भारती, प्रभावती का, सुत सुभाष है.
स्वतन्त्रता………………………….है.

परतंत्रता के अन्धकार में वो दीप था.
झंझावतों से जूझता. हुआ प्रदीप था.
स्वतन्त्रता का शौर्य-दीप तेज बन गया.
अन्धकार नाश को वो सूर्य बन गया.
जिस सूर्य ने परतंत्रता का किया नाश है,
वो भारती, प्रभावती का, सुत सुभाष है.
स्वतन्त्रता………………………..है.



रचना –
प्रदीप भारद्वाज “कवि”
मोदीनगर

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