
वो भारती, प्रभावती का सुत सुभाष है.
वो देश-भक्ति भावना का गहरा सिन्धु था.
माँ भारती की वीरता का मान बिंदु था.
नरपुंगवों का शौर्य था वीरों का जोश था.
शंख पाञ्चजन्य का वो क्रांति-घोष था.
अंग्रेजी राज का किया जिसने विनाश है.
वो भारती, प्रभावती का, सुत सुभाष है.
स्वतन्त्रता…………………………है.
स्वतन्त्रता का क्रांति-गीत जिसने गाया था.
संगीत युद्धभूमि का जिसने बजाया था.
तब चेतना के सुर यहाँ, झंकारने लगे.
जन-जन के शौर्य रक्त में संचारने लगे.
आजाद-हिंद फौज का, जो क्रांति-रास है.
वो भारती, प्रभावती का, सुत सुभाष है.
स्वतन्त्रता………………………….है.
परतंत्रता के अन्धकार में वो दीप था.
झंझावतों से जूझता. हुआ प्रदीप था.
स्वतन्त्रता का शौर्य-दीप तेज बन गया.
अन्धकार नाश को वो सूर्य बन गया.
जिस सूर्य ने परतंत्रता का किया नाश है,
वो भारती, प्रभावती का, सुत सुभाष है.
स्वतन्त्रता………………………..है.

रचना –
प्रदीप भारद्वाज “कवि”
मोदीनगर
5 टिप्पणियाँ
बहुत सुन्दर गीत, बधाई।
जवाब देंहटाएंNice Poem. Thanks.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
sundar bhasha aur shaili,
जवाब देंहटाएंsundar bhav...
mujhe achchi lagee aapki kavita...
aabhar....
badhai
sundar rachna
जवाब देंहटाएंदेश प्रेम से ओतप्रोत सुन्दर गीत के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.