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मैं दर्द पिया करता हूँ [ग़ज़ल] - डॉ. अनिल चड्डा

मैं दर्द पिया करता हूँ, मर-मर के जिया करता हूँ,
फिर भी इस दुनिया को, लहू अपना दिया करता हूँ!

सब संगी-साथी छूटे, अपने थे जो वो रूठे,
मन में जो बातें आयें, मैं खुद से किया करता हूँ!

कोई वक्त न ऐसा आये, तुझको न याद दिलाये,
अब तो मैं खुदा के बदले, तेरा नाम लिया करता हूँ!

रुसवा तुझको नहीं करना, चाहे पड़ जाये मुझे मरना,
कोई जान न पाये दिल की, ले होंठ सिया करता हूँ!

मौसम बदला-बदला है, बदली-बदली हैं निगाहें,
पा लूँ मैं निशां जहाँ तेरा, वो राह लिया करता हूँ !
__________
रचनाकार परिचय:

नाम : डॉ. अनिल चड्डा

आप विज्ञान में स्नातक हैं तथा आपनें हिन्दी में एम. ए. एवं पी. एच. डी. भी की है। आप दिल्ली में जन्मे और यही आपकी कर्म भूमि भी रही हैं । इस समय आप सरकारी नौकरी में कार्यरत हैं।

आपकी कविता में बचपन से हीअभिरुचि थी तथा आप 14-15 वर्ष की उम्र से ही साहित्य सेवा कर रहे हैं। आपकी कविताएँ सरिता, मुक्ता, दैनिक टरिब्यून, इत्यादि के साथ साथ अनेक अंतर्जाल पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं।

सम्पर्क : anilkr112@gmail.com

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7 टिप्पणियाँ

  1. अनिलजी,
    हर शेर दमदार लगा | आपको को पढ़कर अच्छा लगा |

    अवनीश तिवारी

    जवाब देंहटाएं
  2. प्रोत्साहन के लिये धन्यवाद, तिवारीजी !

    जवाब देंहटाएं
  3. रुसवा तुझको नहीं करना, चाहे पड़ जाये मुझे मरना,
    कोई जान न पाये दिल की, ले होंठ सिया करता हूँ!

    सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  4. सब संगी-साथी छूटे, अपने थे जो वो रूठे,
    मन में जो बातें आयें, मैं खुद से किया करता हूँ!


    आपको को पढ़कर अच्छा लगा |

    धन्यवाद ...

    जवाब देंहटाएं
  5. मौसम बदला-बदला है, बदली-बदली हैं निगाहें,
    पा लूँ मैं निशां जहाँ तेरा, वो राह लिया करता हूँ !
    साहित्य शिल्पी पर स्वागत

    जवाब देंहटाएं

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