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संक्रांति पर्व और गंगासागर-स्नान [आलेख] - प्रो. अश्विनी केशरवानी

Chattisgarh ke Teerth by Pr. Ashwini Kesarwani
पृथ्वी का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश 'संक्रांति' कहलाता है और पृथ्वी का मकर राशि में प्रवेश करने को मकर संक्रांति कहते हैं। सूर्य का मकर रेखा से उत्तारी कर्क रेखा की ओर जाना उत्तारायण और कर्क रेखा से दक्षिण मकर रेखा की ओर जाना दक्षिणायन कहलाता है।
Chattisgarh ke Teerth by Pr. Ashwini Kesarwaniरचनाकार परिचय:-भारतेन्दु कालीन साहित्यकार श्री गोविं‍द साव के छठवी पीढी के वंशज के रूप में १८ अगस्त, १९५८ को सांस्कृतिक तीर्थ शिवरीनारायण में जन्मे अश्विनी केशरवानी वर्तमान में शासकीय महाविद्यालय, चांपा (छत्तीसगढ़) में प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं। वे देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में तीन दशक से निबंध, रिपोर्ताज, संस्मरण एवं समीक्षा आदि लिख रहे हैं एवं आकाशवाणी के रायपुर एवं लासपुर केन्द्रों से उनकी अन्यान्य वार्ताओं का प्रसारण भी हुआ है। वे कई पत्रिकाओं के संपादन से भी सम्बद्ध हैं। अब तक उनकी "पीथमपुर के कालेश्वरनाथ" तथा "शिवरीनारायण: देवालय एवं परम्पराएं" नामक पुस्तकें प्रकाशित हैं और कुछ अन्य शीघ्र प्रकाश्य हैं|
जब सूर्य दक्षिणायन से उत्तारायण होने लगता है तब दिन बड़े और रात छोटी होने लगती है। इस समय शीत पर धूप की विजय प्राप्त करने की यात्रा शुरू हो जाती है। उत्तारायण से दक्षिणायन के समय में ठीक इसके विपरीत होता है। वैदिक काल में उत्तारायण को 'देवयान' तथा दक्षिणायन को 'पितृयान' कहा जाता था। मकर संक्रांति के दिन यज्ञ में दिये गए द्रव्य को ग्रहण करने के लिए देवतागण पृथ्वी पर अवतरित होते हैं। इसी मार्ग से पुण्यात्माएं शरीर छोड़कर स्वार्गादि लोकों में प्रवेश करती हैं। इसीलिए यह आलोक का पर्व माना गया है।
धर्मशास्त्र के अनुसार इस दिन स्नान, दान, जप, हवन और धार्मिक अनुष्ठानों का विशेष महत्व है। इस अवसर पर किया गया दान पुनर्जन्म होने पर सौ गुना अधिक मिलता है। इसीलिए लोग गंगादि नदियों में तिल लगाकर सामूहिक रूप से स्नान करके तिल, गुड़, मूंगफली, चांवल आदि का दान करते हैं। इस दिन ब्राह्मणों को शाल और कंबल दान करने का विशेष महत्व होता है।
संक्रांति में गंगा स्नान करने का विशेष महत्व होता है। तभी तो कहा गया है :-
प्रयाग राज शार्दुलं त्रिषु लोकेषु विश्रुतम्।
तत् पुण्यतमं नास्त्रि त्रिषु लोकेषु भारत्॥

प्रयागराज में सूर्य पुत्री यमुना, भागीरथी गंगा और लुप्त रूपा सरस्वती के संगम में जो व्यक्ति स्नान-ध्यान करता है, कल्पवास करके पूजा-अर्चना करता है, गंगा की मिट्टी को अपने माथे पर लगाता है, वह राजसू और अश्वमेघ यज्ञ का फल सहज ही प्राप्त करता है।
मकर संक्रांति के अवसर पर गंगा सागर में बहुत बड़ा मेला लगता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन यशोदा जी ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए व्रत की थी। इस दिन गंगा सागर में स्नान-दान के लिए लाखों लोगों की भीढ़ होती है। लोग कष्ट उठाकर गंगा सागर की यात्रा करते हैं। वर्ष में केवल एक दिन-मकर संक्रांति को यहां लोगों की अपार भीढ़ होती है। इसीलिए कहा जाता है- 'सारे तीरथ बार बार लेकिन गंगा सागर एक बार।'

गंगा सागर कैसे पहंचे :-
कोलकाता से 135 कि. मी. की दूरी पर सागर द्वीप है। यहां प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर 09 से 15 जनवरी को मेला लगता है। इस मेले में देश-विदेश से लाखों तीर्थ यात्री यहां आते हैं। तीर्थ यात्रियों की सुविधा के लिए परिवहन, खाद्य और आवश्यक व्यवस्थाएं पश्चिम बंगाल सरकार सरकारी कर्मचारियों के अलावा स्वयं सेवी संस्थाओं के सहयोग से करती है।
कोलकाता से बस के द्वारा सागर द्वीप तक जाने के दो रास्ते हैं :-
1- कोलकाता से काकद्वीप या हारउड प्वाइंट लाट नं. 8 से लंच द्वारा नदी पार कचुबेरिया होकर। कोलकाता से हारउड प्वाइंट 96 कि. मी. की देरी पर है। यहां से लंच के द्वारा लगभग 100 कि. मी. की दूरी पार कर कचुबेरिया पहंचकर वहां से बस के द्वारा 30 कि. मी. पर गंगासागर स्थित है। बस स्टैंड से मात्र एक-डेढ़ कि. मी. की दूरी पर मेला स्थल है।
2- कोलकाता से नामखाना होकर लंच द्वारा नदी पार चेमागुड़ी होकर। कोलकाता से 114 कि. मी. की दूरी पर नामाखाना स्थित है। नामखाना जेटीघाट से लंच के द्वारा डेढ़-दो घंटे की यात्रा करके नदी पार चेमागुड़ी पहुंचेंगे। यहां से 06 कि. मी. की पैदल अथवा बस की यात्रा करके गंगासागर पहंचा जा सकता है। बस स्टैंड से मात्र एक-डेढ़ कि. मी. की दूरी पर मेला स्थल है।
उपर्युक्त दोनों स्थानों (काकद्वीप और नामखाना) पर सियालदह स्टेशन से ट्रेन द्वारा डायमण्ड हार्बर जाकर वहां से बस के द्वारा पहुंचा जा सकता है। कोलकाता के प्रिंसेपघाट, धर्मतल्ला और हावड़ा से सरकारी एवं गैर सरकारी बसें छूटती है। बड़ा बाजार के सत्यनारायण पार्क से भी गैर सरकारी बसें हर आधे घंटे में छूटती हैं। कोलकाता से हारउड प्वाइंट लाट नं. 8 तक सरकारी बसों की नियमित सेवाएं हैं और मेला के अवसर पर विशेष बस सेवा होती है। जबकि गैर सरकारी बसें मेला के अवसर पर विशेष रूप से चलायी जाती हैं। इसीप्रकार नामखाना जाने वाली बसें भी काकद्वीप से होकर जाती हैं और अब दीघा से भी नामखाना तक बसें चलती हैं।

गंगासागर मेले की व्यवस्था में लगे प्रमुख सरकारी विभाग :-
गंगासागर मेले में आने वाले तीर्थ यात्रियों की सुविधाओं को ध्यान में रखकर केवल मेला क्षेत्र में ही नहीं बल्कि कोलकाता महानगर से लेकर विभिन्न स्थानों पर सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं के द्वारा व्यापक स्तर पर व्यवस्था की जाती है। पूरे मेले का दायित्व जिला प्रशासन दक्षिण 24 परगना का है। पश्चिमी बंगाल सरकार के गृह विभाग के अंतर्गत इस मेले की व्यवस्था हेतु एक स्थायी मेला समिति बनाई गयी है। इस समिति के पदेन सचिव दक्षिण 24 परगना के जिला शासक होते हैं। इस समिति में पी.एच.ई. के चीफ इंजीनियर, पी.डब्लू.डी. के चीफ इंजीनियर, पंश्चिमी बंगाल के स्वास्थ्य निदेशक, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक, डी.सी.पोर्ट, पश्चिमी बंगाल के ट्रांसपोर्ट सेक्रेटरी, कमाण्डेंट मोबाइल सिविल इमरजेंसी फोर्स, भारत सेवा श्रम संघ और जिला सभापति सदस्य होते हैं।
धर्मतल्ला स्थित पिसेघाट, डायमण्ड हार्बर, काकद्वीप, हारउड प्वाइंट लाट नं. 8, कचुबेरिया, नामखाना, चेमागुड़ी और सागर मेला क्षेत्र में अस्थायी छावनियों, रास्ते, सूचना केंद्र, अस्थायी अस्पताल, जेटी तथा खाद्यान्न की व्यवस्था, कानून की व्यवस्था बनाये रखने हेतु विभिन्न सरकारी विभाग महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मेले में आने वाले तीर्थ यात्रियों से तीर्थयात्री कर वसूलने का काम मेला समिति करती है।

तीथ्रयात्रियों के लिए सेवारत विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाएं :-
सरकारी व्यवस्था के अलावा कोलकाता, काकद्वीप, हारउड प्वाइंट, नामखाना, कचुबेरिया और सागरद्वीप आदि में यात्रियों की सेवार्थ अनेक स्वयंसेवी संस्थाएं अपना टेंट लगाते हैं । सभी स्वयंसेवी संस्थाएं तीर्थ यात्रियों को नि:शुल्क आवास, भोजन, चाय-नास्ता, प्राथमिक चिकित्सा आदि उपलब्ध कराती है। इसीप्रकार कोलकाता में तीर्थयात्रियों के ठहरने के लिए होटलों के अलावा निम्निलिखित धर्मशालाएं हैं जहां रूकने की व्यवस्था है।

तीर्थयात्री मेले में क्या करें और क्या न करें :-
1- गंगासागर जाने वाले तीर्थ यात्रियों की संख्या कम से कम होनी चाहिए अन्यथा साथियों के बिछुड़ने की संभावना होती है।
2- तीर्थयात्रा के समय सामान उतना रखें जितना उठा सकें। किसी अपरचित व्यक्ति के उपर विश्वास न करें। सामानों के लिए अगर कुली की आवश्यकता पड़े तो कुली का बैच नंबर अवश्य नोट कर लेवें। बिना बैच वाले किसी कुली के उपर विश्वास न करें।
3- मेले में अथवा यात्रा के दौरान किसी प्रकार की असुविधा होने पर पुलिस, स्वयं सेवकों और सूचना केंद्र से सहायता अवश्य लेवें।
4- यात्रा के समय बस, टे्रन अथवा लंच में चढ़ते और उतरते समय विशेष सावधानी रखें, धक्का मुक्की से बचें।
5- खानपान में विशेष सावधानी रखें, बासी, अस्वस्थकर न ही खायें और न ही पीयें। कचरा को कचरा रखने के डिब्बे में ही डालें, गंदगी न फैलायें।
6- साफ सुथरे स्थान में ही रूकें, जहां तहां मल-मूत्र त्याग न करें।
7- खाने-पीने और रहने के लिए स्वयं सेवी संस्थाओं के द्वारा नि:शुल्क व्यवस्था की जाती है।
8- स्नान करते समय समान व कपड़ों की देखभाल स्वयं करें, किसी अनजान व्यक्ति के भरोसे न छोड़ें।
9- किसी भी प्रकार की असुविधा से बचने के लिए स्वयं सेवी संस्थाओं से संपर्क करें और उनकी सलाह मानें।

बंगाल के सुदूर दक्षिणी छोर पर विश्वविख्यात् सुंदर वन के महत्वपूर्ण भाग के रूप में सागर द्वीप स्थित है। यह द्वीप 30 कि. मी. लंबा और 12 कि. मी. चौड़ा है। यह अत्यंत प्राचीन द्वीप है। इस द्वीप में प्राचीन कपिल मुनि का मंदिर है। नदी के तट पर एक चबुतरे के उपर स्थित मंदिर में सिंदुर राग रंजित कपिल मुनि की मूर्ति स्थित है। उनके बाये हाथ में गंगा का प्रतीक कमण्डल है और दाये हाथ में मोक्ष के लिए कैवल्य का प्रतीक जपमाला है। मस्तक पर पंचनाग है जो शेषनाग के प्रतीक हैं। महामुनि कपिल के दायीं ओर भगीरथ को गोद में लिए पतित पावनी चतुर्भुजी गंगा विराजमान है और बायी ओर राजा सगर की प्रतिमा है। इसके अलावा वीर बजरंगबली, बन देवी के रूप में विशालक्षी देवी और इंद्र यज्ञ के घोड़े के साथ स्थित हैं।
पौष शुक्ल संक्रांति के अवसर पर यहां प्रतिवर्ष विराट मेला लगता है। इस मेले में देश विदेश के लाखों तीर्थयात्री यहां गंगा स्नान कर दर्शन-पूजन करने आते हैं।

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4 टिप्पणियाँ

  1. इस बार तो महाकुम्भ भी सोने पर सुहागा हो गया है। आलेख का आभार।

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  2. सुन्दर आलेख --
    मकर संक्राति के पावन पर्व पर
    आप को प्रकाश और ज्ञान प्राप्त हों
    इस मंगल कामना सह
    - लावण्य

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  3. जानकारीपूर्ण लेख के लिये आभार!!

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