

सुशील कुमार का जन्म 13 सितम्बर, 1964, को पटना सिटी में हुआ, किंतु पिछले तेईस वर्षों से आपका दुमका (झारखण्ड) में निवास है।
आपनें बी०ए०, बी०एड० (पटना विश्वविद्यालय) से करने के पश्चात पहले प्राइवेट ट्यूशन, फिर बैंक की नौकरी की| 1996 में आप लोकसेवा आयोग की परीक्षा उत्तीर्ण कर राज्य शिक्षा सेवा में आ गये तथा वर्तमान में संप्रति +२ जिला स्कूल चाईबासा में प्राचार्य के पद पर कार्यरत हैं।
आपकी अनेक कविताएँ-आलेख इत्यादि कई प्रमुख पत्रिकाओं, स्तरीय वेब पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं।
सुनना केवल तुम
वह आवाज़
जो बज रही है
इस तन-तंबूरे में
स्वाँस के नगाड़े पर
प्रतिपल दिनरात
वहाँ लय भी है,
और ताल भी,..तो
जरुर वहाँ नृत्य भी
होगा और दृश्य भी ।
ओह, कितना शोर है
सब ओर,
कितने कनफोड़ स्वर हैं
आवाज़ की इस दुनिया में
और कितनी बेआवाज़
हो रही है यहाँ मेरी
अपनी ही आवाज़ !
कहीं चीखें सुन रहा हूँ,
कहीं क्रंदन।
मशीनों के बीच घुमता हुआ
खुद एक मशीन हो गया हूँ
भीड़ का तमाशाई बन रहा हूँ कहीं
तो कभी तमाशबीन हो गया हूँ !
कम करो कोई बाहर की
इन कर्कश-बेसूरी आवाज़ों को...
अपने घर लौटने दो मुझे
सुनने दो आज
वह अनहद नाद
जन्म से ही मेरे भीतर
जो बज रहा है
मेरे सुने जाने की प्रतीक्षा में।
उसकी लय और ताल पर
मुझे झूमने दो
मुझे थोड़ी देर यूँ ही
स्वाँस-हिंडोला में
झूलने दो।
वह आवाज़
जो बज रही है
इस तन-तंबूरे में
स्वाँस के नगाड़े पर
प्रतिपल दिनरात
वहाँ लय भी है,
और ताल भी,..तो
जरुर वहाँ नृत्य भी
होगा और दृश्य भी ।
ओह, कितना शोर है
सब ओर,
कितने कनफोड़ स्वर हैं
आवाज़ की इस दुनिया में
और कितनी बेआवाज़
हो रही है यहाँ मेरी
अपनी ही आवाज़ !
कहीं चीखें सुन रहा हूँ,
कहीं क्रंदन।
मशीनों के बीच घुमता हुआ
खुद एक मशीन हो गया हूँ
भीड़ का तमाशाई बन रहा हूँ कहीं
तो कभी तमाशबीन हो गया हूँ !
कम करो कोई बाहर की
इन कर्कश-बेसूरी आवाज़ों को...
अपने घर लौटने दो मुझे
सुनने दो आज
वह अनहद नाद
जन्म से ही मेरे भीतर
जो बज रहा है
मेरे सुने जाने की प्रतीक्षा में।
उसकी लय और ताल पर
मुझे झूमने दो
मुझे थोड़ी देर यूँ ही
स्वाँस-हिंडोला में
झूलने दो।
6 टिप्पणियाँ
कम करो कोई बाहर की
जवाब देंहटाएंइन कर्कश-बेसूरी आवाज़ों को...
अपने घर लौटने दो मुझे
सुनने दो आज
वह अनहद नाद
जन्म से ही मेरे भीतर
जो बज रहा है
मेरे सुने जाने की प्रतीक्षा में।
प्रभावी कविता
हमेशा की तरह बेहतरीन कविता सुशील कुमार जी, लेकिन आप गायब कहाँ हैं?
जवाब देंहटाएंbhut prsiddh pnkti hai "tn ke tmure me sanson ke do tar bole" bhkti sahitya ki sadhna ka aap ne achchha vishy chuna haisahitya ke bhkti kal me kviyon ne is ka bhrpoor upyog kiya hai or aadhunik kal me p ne bhi achchha pryog kia hai
जवाब देंहटाएंdr.vedvyathit@gmail.com
बहुत अच्छी कविता, बधाई।
जवाब देंहटाएंKavita achchi lagi - BADHAI
जवाब देंहटाएंकहीं चीखें सुन रहा हूँ,
जवाब देंहटाएंकहीं क्रंदन।
मशीनों के बीच घुमता हुआ
खुद एक मशीन हो गया हूँ
भीड़ का तमाशाई बन रहा हूँ कहीं
तो कभी तमाशबीन हो गया हूँ !
एक सुंदर भाव प्रकट करती ही..बढ़िया रचना..बधाई सुशील जी!!
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.