
श्रवण बहुत ईमानदारी से जिया और मरते दम तक ईमानादारी दिखा गया। अंत समय में भी श्रवण ने दवाईयाँ लेने से मना कर दिया। कहने लगा “इलाज में कमीशन, दवाईयों में कमीशन, लाश लेनी है तो कमीशन। बस कुछ भी देना है तो बंद मुट्ठी दे दीजिए। आखिर, कब तक लोग भ्रष्टाचार में डूबे रहेंगे? कब तक चन्द रुपयों के लिए गरीबों की जान से खेलते रहेंगे?
श्रवण की घरवाली अंत तक कहती रही “एक आपके ईमानदारी दिखाने से कौनसा, किसी का भला होने वाला है। लोग तो ऐसे ही मरते हैं और जीते हैं। सब भूल जाएंगे कल।“
श्रवण की आंखों के आगे बार-बार उसकी तड़पती बेटी का चेहरा सामने आ रहा था जो सिर्फ़ गरीब होने के कारण पूरी रात अस्पताल की गैलरी में पड़ी रही। डाक्टरों से लाख गुहार करने के बाद भी उसकी बेटी को न तो बैड मिला और न ही इलाज।
श्रवण ने अंत समय में घरवाली से कहा “देखो! तुम हमारे लाडले को डाक्टर बनाना और इसे समझा देना कि हमेशा गरीबों की सेवा करें।“
“यदि लाडले ने डाक्टर बनने के बाद किसी से रिश्वत मांगी तो.......“ घरवाली एक ही सांस में बोल गयी।
इसका उत्तर देने से पहले ही श्रवण के प्राण पखेरू उड़ चुके थे।
2 टिप्पणियाँ
व्यावहारिक लघुकथा
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लघुकथा है, साहित्य शिल्पी पर स्वागत।
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.