HeaderLarge

नवीनतम रचनाएं

6/recent/ticker-posts

आधुनिक युग में सीता अपहरण [डॉ. प्रेम जन्मेजय के नाटक का मंचन] - मनोहर पुरी

Kaifi


रामायण की मूल कथा पर आधरित प्रसिद्ध व्यंग्यकार डॉ प्रेम जनमेजय का यह नाटक आज की प्रशासनिक व्यवस्था में व्याप्त विसंगतियों का ऐसा बखिया उधेड़ता है कि स्तब्ध हुए दर्शक यह सोचने के लिए बाध्य हो जाते हैं कि वास्तव में यदि आज के युग की ही तरह त्रेता में भगवान राम को अपने भाई लक्ष्मण के साथ सीता हरण का मामला पंचवटी के थाने में दर्ज करवाने के लिए जाना पड़ता तो क्या होता। समाज के खोखलेपन को दर्शाने वाले इस नाटक की प्रस्तुति पहली बार हैदराबाद की रंगमंच संस्था सूत्राधर द्वारा, बिडला सांइस सेंटर के भास्कर ऑडिटोरियम में, उसके संस्थापक विनय वर्मा के कुशल निर्देशन में की गई। ‘हिंदू’, ‘डेकन क्रोनिकल’, ‘दी न्यू इंडियन एक्सप्रेस’, ‘हिंदी मिलाप’ आदि समाचार पत्रों ने इस नाटक की प्रशंसात्मक समीक्षाएं प्रकाशित की हैं। 21,22 और 23 अगस्त को इसका पुनः सफल मंचन हुआ। दर्शक पागलपन की हद तक दीवाने दिखे।




नाटक में समाज की समकालीन परिस्थितियों की वास्तविकता का परिचय देते हुए नाटककार ने उसे आईना दिखाया है। तीखे व्यंग्य एवं चुटीले हास्य के माध्यम से वर्तमान पुलिस व्यवस्था का चित्रण किया गया है। थानेदार की भूमिका में विनय वर्मा अपनी पत्नी संजोगिता मिश्रा के साथ एक स्थानीय बाहुबली से लूट का माल वसूल करके अपने घर लाते हैं तो थानेदारनी उसमें से देवताओं को उनका भाग सौंप कर उन्हें प्रसन्न करने की बात करती है। यहां पर थानेदारनी की भौतिक सोच और स्थानीय नेता विशाल सक्सेना के साथ मिल कर हर स्थिति में माल लूट कर मौज मनाने की मनोवृत्ति का अच्छा चित्राण किया गया है। हवलदार के रूप में मोहित भी उनका साथ देता है।


थानेदार भी अपने पद के मद में चूर नशे में धुत होकर भगवान राम को इस बात के लिए दोषी ठहराता है कि उन्हें पुलिस पर तनिक भी विश्वास नहीं था। थानेदार कहता है कि राम ने बेकार ही सीता की खोज में जंगलों की खाक छानी और दर दर भटकते रहे। यदि वह थाने में रिपोर्ट लिखवा देते तो पुलिस तुरन्त सीता को बरामद कर लाती।


नाटक में सपने के माध्यम से यह कल्पना की गई है कि यदि सीता के अपहरण के बाद राम-लक्ष्मण अच्छे नागरिकों की भांति पंचवटी के थाने में सीता के गुम होने की रिपार्ट दर्ज करवाने आते तो थानेदार उनके साथ कैसा भद्दा व्यवहार करता। यही स्थिति नाटक की धुरी है। आज की व्यवस्था होती तो उस समय थाने में पहुंचने पर सबसे पहले तो राम के उपर मरीच की हत्या का आरोप लगाया जाता और बात बात में यह कह कर धमकाया जाता कि अंदर बंद कर दूंगा। इस प्रकार पुलिस व्यवस्था की विसंगतियों को बहुत कुशलता से उभारा गया है। वर्तमान पुलिस व्यवस्था, राजनीति और पुलिस की परस्पर सांठ-गांठ का अच्छा प्रस्तुतिकरण किया गया है। नाटक में सबसे अच्छी बात यह है कि लेखक और निर्देशक ने नाटक को आदर्शवादिता के ठप्पे से बचा कर रखा है। नाटक हमारी अत्यधिक भ्रष्ट होती व्यवस्था एवं धर्म के व्यावसायिक प्रयोग की विसंगतियों को सामने लता है।


संयोगिता मिश्रा ने थानेदारनी की भूमिका में दर्शकों को प्रभावित किया तो हवलदार बने किशन सिंह, पुरोहित की भूमिका में रवि कुमार कुलकर्णी, आदि .ने भी अपनी अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है। गौरव अग्रवाल, रविराज इत्यादि कई कलाकार तो पहली बार अभिनय करते हुए भी रंगमंच पर अपना प्रभाव छोड़ने में सपफल रहे।


नाटक का निर्देशन विनय वर्मा ने, श्री भास्कर के परामर्श से बहुत कुशलता के साथ किया है।

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ

आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.

आइये कारवां बनायें...

~~~ साहित्य शिल्पी का पुस्तकालय निरंतर समृद्ध हो रहा है। इन्हें आप हमारी साईट से सीधे डाउनलोड कर के पढ सकते हैं ~~~~~~~

डाउनलोड करने के लिए चित्र पर क्लिक करें...