आपके आशीष से ,तालीम से और ज्ञान से
उपदेश से ,उसूल से , सार और व्याख्यान से
अप्रमाण जीवन को मिली परिधि नई,नव दिशा
श्वेत मानस पटल पर स्वरूप विद्या का धरा
डगमगाते कदम को नेक राह दी,आधार दिया
संकीर्ण ,संकुचित बुद्धि को अनंत सा विस्तार दिया
पहले सेमल से कपास पश्चात कपास को सूत कर
रूई को आकृति एक और बाती सा सुन्दर नाम दिया
कभी आचार से ,सदाचार से ,कभी नियम-दुलार से
उद्दंडता को दंड देकर हमे विकसित किया,आयाम दिया.
निर्लोभ रह देते रहे सब , न कुछ अभिलाषा रही
पात्र जीवन मे सफल हो शायद यही आशा रही
आपके ऋण से उऋण किसी हाल हो सकते नहीं
कुछ शब्द मे अनुसंशा कर जज़्बात कह सकते नहीं
गुरुवर मेरे सिर पर पुनः आशीषमय कर रख दीजिये
“दीपक “जले सूरज जैसा इतना प्रकाश भर दीजिये
अच्छी कविता..बधाई
उत्तर देंहटाएंati uttam kavita
उत्तर देंहटाएंkavita ke dwara diya gaya shikshak ko yah samman sarahneeya hai.
उत्तर देंहटाएंnice
उत्तर देंहटाएंi needed it thanx...
उत्तर देंहटाएंbahut aachi kavita hai.
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