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हसरत-ए-मंजिल [कविता] - सुमन 'मीत'

न मैं बदला
न तुम बदली
न ही बदली
हसरत-ए-मंजिल
फिर क्यूं कहते हैं सभी
कि बदला सा सब नज़र आता है

शमा छुपा देती है
शब-ए-गम के
अंधियारे को
वो समझते हैं
कि हम चिरागों के नशेमन में जिया करते हैं ....






कविता - सुमन "मीत"

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2 टिप्पणियाँ

  1. शमा छुपा देती है
    शब-ए-गम के
    अंधियारे को
    वो समझते हैं
    कि हम चिरागों के नशेमन में जिया करते हैं ....

    बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं

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