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तपस्या [कविता] - डॉ. राकेश कुमार बब्बर


एक तपस्या है
जीवन को जीना,
कितना सुंदर है
जूझ कर मरना !

इसलिए
तुम करो तप
कुछ अद्भुत
कुछ अपूर्व रचने को,
जीवन से पार उतरने को ।

चाहे
हों कितने ही कॉँटे
चाहे
हों कितनी ही बाधाएँ
तुम डिगना नहीं
तुम रुकना नहीं
चलते जाना उस राह
जिसकी मंजिल
देगी तुम्हे अथाह
समृद्धि, शांति औ’ चैन,
जहॉँ होगा केवल प्रकाश
नही होगी अंधेरी रैन ।

परंतु ’गर कहीं
अनजाने-अनचाहे
या
उस सत्ता की चाह से
तुम पिछड़ जाओ
अपनी मंजिल पाने से
और
मिल जाओ
उस राह की धूल में
तुम गम न करना
कदापि न करना
क्योंकि तब भी
तब भी
तुम्हें
होगा संतोष
कि
झुके नहीं तुम
और
रखे रखा समेटे असूलों को,
रुके नहीं तुम
देखकर राह में
उन डगमगाते हुए पुलों को ।

और तुम
करते गए तप
था जब तक
दम में दम
क्योंकि
तुम्हें मालूम था
एक तपस्या है
जीवन को जीना,
कितना सुंदर है
जूझ कर मरना ।

---------
कवि - डॉ. राकेश कुमार बब्बर
2087/5
लहल कॉलॉनी, पटियाला
पंजाब

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6 टिप्पणियाँ

  1. क्योंकि
    तुम्हें मालूम था
    एक तपस्या है
    जीवन को जीना,
    कितना सुंदर है
    जूझ कर मरना ।

    बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  2. साहित्य शिल्पी पर आपका स्वागर है। राकेश जी को अच्छी कविता के लिये बधाई

    जीवन दुआ

    जवाब देंहटाएं
  3. राकेश जी साहित्य शिल्पी पर आपका स्वागत है बहुत अच्छी कविता है।

    जवाब देंहटाएं

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