
एक तपस्या है
जीवन को जीना,
कितना सुंदर है
जूझ कर मरना !
इसलिए
तुम करो तप
कुछ अद्भुत
कुछ अपूर्व रचने को,
जीवन से पार उतरने को ।
चाहे
हों कितने ही कॉँटे
चाहे
हों कितनी ही बाधाएँ
तुम डिगना नहीं
तुम रुकना नहीं
चलते जाना उस राह
जिसकी मंजिल
देगी तुम्हे अथाह
समृद्धि, शांति औ’ चैन,
जहॉँ होगा केवल प्रकाश
नही होगी अंधेरी रैन ।
परंतु ’गर कहीं
अनजाने-अनचाहे
या
उस सत्ता की चाह से
तुम पिछड़ जाओ
अपनी मंजिल पाने से
और
मिल जाओ
उस राह की धूल में
तुम गम न करना
कदापि न करना
क्योंकि तब भी
तब भी
तुम्हें
होगा संतोष
कि
झुके नहीं तुम
और
रखे रखा समेटे असूलों को,
रुके नहीं तुम
देखकर राह में
उन डगमगाते हुए पुलों को ।
और तुम
करते गए तप
था जब तक
दम में दम
क्योंकि
तुम्हें मालूम था
एक तपस्या है
जीवन को जीना,
कितना सुंदर है
जूझ कर मरना ।
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कवि - डॉ. राकेश कुमार बब्बर
2087/5
लहल कॉलॉनी, पटियाला
पंजाब
6 टिप्पणियाँ
क्योंकि
जवाब देंहटाएंतुम्हें मालूम था
एक तपस्या है
जीवन को जीना,
कितना सुंदर है
जूझ कर मरना ।
बहुत खूब
nice
जवाब देंहटाएं-Alok Kataria
बहुत अच्छी कविता
जवाब देंहटाएंसाहित्य शिल्पी पर आपका स्वागर है। राकेश जी को अच्छी कविता के लिये बधाई
जवाब देंहटाएंजीवन दुआ
राकेश जी साहित्य शिल्पी पर आपका स्वागत है बहुत अच्छी कविता है।
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.