
नीर विहीन
इंद्रावती
बहती है मेरे घर के तीर
कभी छूता था उसका जल
मेरे घर की चौखट को
बरसात में
चौखट भी अब कहती
मै हो गई अब नीर विहीन
मेरे तट पर बजती
महादेव की घण्टियां
मेरे जल से
बुझती
लोगों की प्यास
मेरे तट पर
मिलती है
मृत आत्माओं को षांति
मेरे जल में झिलमिलाते हैं
आस्था के दीप
धुलते हुए गंदे कपड़े
नंग-धड़ंग उछलते कूदते
नहाते बच्चे मेरे जल में
मैं किस के पास जाकर गाऊँ
अपना दुखड़ा
मैं भी तो हूँ अब नीर विहीन
मेरा जल चोरी हो गया
मैं हो गयी अपहृत
मेरी ही सहयोगिनी ने
मुझे लील लिया या
मुझे जबर
उसके हलक में
उढ़ेल दिया
ये
तो जोरा ही जाने
काला हाण्डी मेरा मायका
वहीं जन्मी मैं
बस्तर में पली बड़ी
जगदलपुर और चित्रकूट
का स्नेह मिला
गोदावरी मेरी ससुराल
जहाँ मेरे नाम का
असतित्व हो गया विलीन
और मैं बन गयी गोदावरी
जोरा ने मुझे चुरा लिया
मेरा साथ मेरे मायके ने
ही नहीं दिया
गोरियाबहार और नारंगी नदी
ने दिया मुझे सहारा
जन-जन की प्यास बुझाने वाली
मैं खुद प्यासी हूँ
इस आस में
हाथ उठेंगे जन-जन के
बुझाने मेरी प्यास, बस्तर की प्यास
आस्था की प्यास, विश्वास की प्यास
मुझे है विश्वास, मुझे है विश्वास
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4 टिप्पणियाँ
Nice Poem
जवाब देंहटाएं-Alok Kataria
जन-जन की प्यास बुझाने वाली
जवाब देंहटाएंमैं खुद प्यासी हूँ
इस आस में
हाथ उठेंगे जन-जन के
बुझाने मेरी प्यास, बस्तर की प्यास
आस्था की प्यास, विश्वास की प्यास
मुझे है विश्वास, मुझे है विश्वास
सुन्दर और संवेदना से भरी कविता।
कविता नें इन्दरावती की यात्रा को बखूबी कहा है।
जवाब देंहटाएंमैं जलधर मैं नीर धर मैं ही कवियों की प्रेरणा,,,
जवाब देंहटाएंमैं नदी हूँ मै तृप्त करती कंठो को ।
मैं ही प्रेमियों की संवेदना ।।
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.