
किसी गांव में एक बूढ़ा किसान रहता था। उसके दो लड़के थे। एक का नाम बड़कू और दूसरे का नाम छुटकू था। दोनों हमेशा आपस में झगड़ते रहते थे। किसान उनको बहुत समझाता पर उनके कानों पर जूं तक न रेंगती।
एक बार किसान बीमार पड़ गया। बहुत दवा-इलाज किया, पर कोई फायदा न हुआ। उसका स्वास्थ्य निरंतर गिरता गया। एक दिन उसने सदा के लिए आंखें मूंद कर लीं।
किसान की मृत्यु के बाद कुछ समय तक तो दोनों लड़के आपस में मेल से रहे। लेकिन एक दिन किसी बात पर दोनों झगड़ पड़े। बड़कू कहने लगा, ‘‘देखो छोटे, अब हम एक जगह नहीं रह सकते। अब हमें पिता की संपत्ति आपस में बांट लेनी चाहिए।’’
‘‘हां, यही ठीक रहेगा। रोज-रोज की झंझट से छुटकारा मिलेगा,’’ छुटकू बोला।
दोनों ने धन-दौलत, जमीन और अन्य सभी चीजें आपस में बांट लीं। बस, बच रही एक गाय। समस्या यह आई कि गाय किसके हिस्से में जाए ?
इस बात पर दोनों में बहस होने लगी। बहस ने धीरे-धीरे विवाद का रूप धारण कर लिया। आस-पास के लोग इकट्ठा हो गए। जब बहस से कोई हल न निकला तो पंचायत बुलाई गई।
पंचों के सामने बड़कू-छुटकू ने अपनी समस्या कह सुनाई। सारी बात जानकर पंचों ने अपना निर्णय सुनाया, ‘‘चूंकि गाय एक ही है इसलिए इसे बांटना संभव नहीं है। अतः दोनों भाइयों को चाहिए कि वे गाय का दूध आपस में बांट लिया करें।’’
पंचायत के निर्णय से दोनों भाई संतुष्ट हो गए।
पर अगले दिन नई समस्या आकर खड़ी हो गई। सवाल यह था कि गाय को चारा-भूसा कौन खिलाए ? इसी बात पर दोनों फिर झगड़ने लगे।
फिर पंचायत बैठी। पंचों ने निर्णय दिया-‘‘दोनों भाई बारी-बारी से एक-एक दिन गाय के दाने पानी का प्रबंध करें।’’
पंचायत के निर्णय से दोनों भाई सहमत हो गए।
कुछ दिन शांति से बीते।
कुछ दिनों के बाद गाय ने सुंदर बछड़े को जन्म दिया। दोनों भाई बहुत खुश हुए। लेकिन एक समस्या फिर आ खड़ी हुई। सवाल यह पैदा हुआ कि बछड़ा किसके हिस्से जाए। इस बात को लेकर दोनों फिर लड़ पड़े।
लड़ाई-झगड़े से कोई हल न निकला तो उन्होंने पंचायत के सामने फिर गुहार लगाई।
पंचायत ने निर्णय दिया-‘चूंकि बछड़े का बंटवारा संभव नहीं है इसलिए उसे पंचायत में दान दे दिया जाना ही उचित होगा।’
‘न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी’ यह सोचकर दोनों भाई बछड़ा दान देने पर सहमत हो गए।
शाम को बड़कू दूध दुहने बाड़े में पहुंचा तो हैरान रह गया। गाय की हालत विचित्र हो रही थी। वह जोर-जोर से रंभा रही थी। रस्सी से छूटने के प्रयास मेंउसने अपनी गर्दन घायल कर ली थी। चारे की नांद एक ओर औंधी पड़ी थी। बड़कू हैरान रह गया। वह भागकर छुटकू के पास पहुंचा और सारी बात बताई।
सारी बात जानकर छुटकू बोला, ‘‘भैया मुझे तो लगता है बछड़े के बिछोह में गाय पगला गई है।’’
‘‘अब दूध कैसे दुहेंगे ?’’ बड़कू बोला।
‘‘चलो फिर कोशिश करके देखते हैं।’’
दोनों बाड़े के अंदर जा पहुंचे। गाय उन्हें देखते ही क्रोध से फंुफकारने लगी। उसके नथुनों से झाग उड़ने लगा।
दोनों डरते-डरते अंदर पहुंचे और दुहने की कोशिश करने लगे पर सफल न हुए। पुचकारा, हरी घास की लालच दी मगर बात फिर भी नहीं बनी। घंटे भर की कोशिशों के बाद दो-दो दुलत्तियां खाकर दोनों बाहर आ गए।
दो दिनों तक गाय का यही हाल रहा तो दोनों फिर भागकर पंचों के पास पहुंचे।
बड़कू ने पंचों के सामने गिड़गिड़ाकर कहा, ‘‘पंचों जब से हमने बछड़ा दान दिया है, गाय की बुरी हालत हो रही है। दो दिन से उसने तिनका तक नहीं छुआ है। दूध दुहना तो दूर, उसके पास जाना मुहाल है।’’
सारी बात सुनकर सुनकर पंचों ने कहा, ‘‘इस तरह से तो गाय की मृत्यु हो जाएगी और तुम्हें गो हत्या का पाप लगेगा। बछड़ा भी बिना गाय के दूध के जीवित नहीं रह सकता है। उचित यही होगा कि गाय भी पंचायत को दान दे दी जाए।’’
मरते क्या न करते गाय भी पंचायत को दान करनी पड़ी।
लौटते समय बड़कू ने छुटकू से कहा, ‘‘हम बेकार ही बंटवारे के चक्कर में फंसे। बछड़ा तो गया ही था, गाय भी हाथ से निकल गई।’’
‘‘हां भैया,’’ छुटकू बोला, ‘‘बंटवारा कभी सुख नहीं देता।’’
***********
लेखक परिचय:-
डा. मोहम्मद अरशद खान
जन्मतिथि- 17.09.1977
जन्म-स्थान- उधौली(बाराबंकी)
शिक्षा- एम0ए0(हिन्दी, पीएच0डी0, जे0आर0एफ0(नेट)
प्रकाशन- देश की सभी प्रमुख बाल पत्र-पत्रिकाओं में 1990 से निरंतर प्रकाशन
पुस्तकें- 1-रेल के डिब्बे में(बाल कविता संग्रह)2-किसी को बताना मत(बाल कहानी संग्रह)
पुरस्कार/सम्मान- 1-चिल्ड्रेन बुक ट्रस्ट द्वारा कहानियां पुरस्कृत-प्रतियोगिता अपप-अपपप में,2-नागरी बाल साहित्य संस्थान बलिया द्वारा सम्मनित-2002, 3-पं0 हरप्रसाद पाठक स्मृति पुरस्कार-2008, 4-राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मान समारोह-2006 अल्मोडा में सम्मानित
संप्रति- जी0 एफ0 पी0 जी0 कालेज शाहजहांपुर में असिस्टेंट प्रोफेसर
6 टिप्पणियाँ
बहुत अच्छी बालकहानी है।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं‘‘बंटवारा कभी सुख नहीं देता।’’ .....
जवाब देंहटाएंजी एफ कॉलेज के प्रांगण में 1977 के दिनों में ही हम सब मित्रों को अन्यान्य प्रकार से जैसे विरासत में मिल चुकी थी. विद्यार्थी जीवन की बहुत सी बातें संस्कार बन व्यक्ति के मन को बहुत प्रभावित कर जाती हैं. बाल साहित्य का अपना महत्व है. एक बहुत अच्छी बात अत्यंत सरल प्रकार से कहने के लिये .... बधाई.
रोचक कहानीहै डॉ. अरशद। संदेश साफ है।
जवाब देंहटाएंप्रेरणास्पद। प्रशंसा के लिये शब्द नहीं हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर व ज्ञान दायक
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.