
हमने छुपा के रक्खी थी सबसे जिगर की बात
गैरों से फिर भी सुन रहे हैं अपने घर की बात
छोटी सी बात से ही तो बुनियाद हिल गई
हम क्या बताएँ आपको दीवार-ओ-दर की बात
बनना सफ़ेदपोश तो कालिख़ लगाना सीख
उंगली उठाना बन गया अब तो हुनर की बात
बातें फक़त बनाने में, जाए न उम्र बीत
लाओ अगर अमल में तो होगी असर की बात
दिलवर के इन्तज़ार में, जब रात ढल गई
महफ़िल में तब से हो रही है चश्मे-तर की बात
मंज़िल मिली तो, हमने ही बदला है रास्ता
“श्रद्धा” है करती शौक़ से अब तो सफ़र की बात
1 टिप्पणियाँ
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल
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