
ज़िंदगी जी का जंजाल हो चली है,
मौत भी ससुरी मुहाल हो चली है..
न राशन रसद में,
न ईंधन रसद में,
न महफ़िल हीं जद में,
न मंज़िल हीं जद में,
ना पग ना पगडंडी,
सौ ठग हैं सौ मंडी,
दिल ठंढा, जां ठंढी,
शक्ति की सौं... चंडी
भी अब तो बेबस बेहाल हो चली है..
ज़िंदगी जी का जंजाल हो चली है..
न चेहरा हीं सच्चा,
न सीसा हीं सच्चा,
या किस्मत दे गच्चा,
या हिम्मत दे गच्चा..
जो थम लूँ तो अनबन,
जो बढ लूँ तो अनशन,
जो दम लूँ तो मंथन,
गंवा के सब अनधन
ये धरती तो अब पाताल हो चली है...
ज़िंदगी जी का जंजाल हो चली है..
11 टिप्पणियाँ
जो थम लूँ तो अनबन,
जवाब देंहटाएंजो बढ लूँ तो अनशन,
जो दम लूँ तो मंथन,
गंवा के सब अनधन
ये धरती तो अब पाताल हो चली है...
ज़िंदगी जी का जंजाल हो चली है..
बहुत सुन्दर रचना
बहुत अच्छी रचना जिसमें शब्दप्रयोग मे कलात्मकता है।
जवाब देंहटाएंना पग ना पगडंडी,
जवाब देंहटाएंसौ ठग हैं सौ मंडी,
दिल ठंढा, जां ठंढी,
शक्ति की सौं... चंडी
वाह वाह
nice
जवाब देंहटाएं-Alok Kataria
एक बेहतरीन रचना ! बहुत ही खूबसूरत !! सुन्दर !!!
जवाब देंहटाएंबधाई |
अवनीश तिवारी
कविता की बुनावट एसी है कि जैसे नदी में बहते जाना।
जवाब देंहटाएंन राशन रसद में,
जवाब देंहटाएंन ईंधन रसद में,
न महफ़िल हीं जद में,
न मंज़िल हीं जद में,
ना पग ना पगडंडी,
सौ ठग हैं सौ मंडी,
दिल ठंढा, जां ठंढी,
शक्ति की सौं... चंडी
भी अब तो बेबस बेहाल हो चली
shabdon kya hi sunder pryog kiya hai
pash kar aanand aaya
saader
rachana
बहुत अच्छी कविता, बधाई
जवाब देंहटाएंप्रसंशनीय कविता।
जवाब देंहटाएंतनहा जी मैं एसे ही आपका "पंखा" नहीं हूँ। सही भावों के लिये सही शब्द कविता को पाठक के दिल तक पहुँचाते हैं। प्रशंशा के लिये शब्द कम ही पडेंगे।
जवाब देंहटाएंसभी मित्रों का तह-ए-दिल से आभार!!
जवाब देंहटाएंराजीव जी, आप खुद को मेरा "पंखा" कहकर मुझे शर्मिन्दा कह रहे हैं। शिल्प गढने की थोड़ी बहुत कला जो मुझमें है, वो मैने आपसे हीं सीखी है। इस तरह तो मैं आपका "पंखा" हुआ ना :)
-विश्व दीपक
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