
ओस की बूंदों में भीगे हैं पत्ते कलियाँ फूल सभी
प्यार के छींटे मार गया है जैसे कोई अभी अभी
अलसाये से नयन अभी भी ख्वाबों में खोये से हैं
बेशक आँख खुली है फिर भी टूटा कब है ख्वाब अभी
दिन कितने अच्छे होते थे रातें खूब उजली थीं
पर लगता है जैसे गुजरी हंसों की सी पांत अभी
कितनी सारी बातें बरगद की छाया में होतीं थीं
उन में से शायद ही होंगी तुम को कोई याद अभी
खेल खेलते खूब रूठना तुम को कितना आता था
फिर कैसे था तुम्हे मनाता क्या ये भी है याद अभी
कैसे भूलों वे सब बातें बहुत बहुत कोशिश की है
पर मुझ को वे कहाँ भूलतीं सब की सब हैं याद अभी
3 टिप्पणियाँ
खेल खेलते खूब रूठना तुम को कितना आता था
जवाब देंहटाएंफिर कैसे था तुम्हे मनाता क्या ये भी है याद अभी
कैसे भूलों वे सब बातें बहुत बहुत कोशिश की है
पर मुझ को वे कहाँ भूलतीं सब की सब हैं याद अभी
डॉ. साहब, बहुत सुन्दर सुन्दर पंक्तियाँ रच दी हैं, बधाई स्वीकार करें।
nice
जवाब देंहटाएं-Alok Kataria
bahut khoob sunder prastuti
जवाब देंहटाएंbadhai
saader
rachana
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