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अनमने मन से मिलते मिलाते रहे [ग़ज़ल] - दीपक गुप्ता

अनमने मन से मिलते मिलाते रहे
जब कोई मिला गया मुस्कुराते रहे

दर्द से एक रिश्ता जो कायम हुआ
उम्र भर हम वो रिश्ता निभाते रहे

कोई अपना मिला ही नहीं भीड़ में
लोग आते रहे और जाते रहे

दर्द दुनिया का तुमने सुना कब भला
तुम तो अपनी ही ढपली बजाते रहे

वक़्त, किस्मत, अना, मुफलिसी और वो
ज़िन्दगी भर मुझे आजमाते रहे

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