
इतिहास में कब ढल पाते हैं
बौनी पड़ जाती सभी उपमायें
शब्द भी कम पड़ जाते हैं।
सत्य-अहिंसा की लाठी
जिस ओर मुड़ जाती थी
स्वातंत्रय समर के ओज गीत
गली-गली सुनाई देती थी।
बैरिस्टरी का त्याग किया
लिया स्वतंत्रता का संकल्प
बन त्यागी, तपस्वी, सन्यासी
गाए भारत माता का जप।
चरखा चलाए, धोती पहने
अंग्रेजों को था ललकारा
देश की आजादी की खातिर
तन-मन-धन सब कुछ वारा।
हो दृढ़ प्रतिज्ञ, संग ले सबको
आगे कदम बढ़ाते जाते
गाँधी जी के दिखाये पथ पर
बलिदानी के रज चढ़ते जाते।
हाड़-माँस का वह मनस्वी
युग-दृष्टा का था अवतार
आलोक पुंज बनकर दिखाया
आजादी का तारणहार।
भारत को आजाद कराया
दुनिया में मिला सम्मान
हिंसा पर अहिंसा की विजय
स्वातंत्रय प्रेम का गायें गान।
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कृष्ण कुमार यादव
भारतीय डाक सेवा
निदेशक डाक सेवाएं
अंडमान व निकोबार द्वीप समूह, पोर्टब्लेयर-744101
6 टिप्पणियाँ
nice
जवाब देंहटाएं-Alok Kataria
behad umda rachana...........gandhi ji ko naman.
जवाब देंहटाएंगाँधी जयंति की शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता, गाँधी जयंति की शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंगाँधी जयंति पर राष्ट्रपिता को याद करना अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंगाँधी जयंति पर अनुपम प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.