
लंबे-लंबे हथकंडे।
चौड़े-चौड़े चौराहे
सिमटे-सिमटे-से आँगन
खोटे सिक्कों में बिकते
उजले-उजले वृंदावन
अपने अपने घाटों पर
हम सब काशी के पंडे ।
प्यासे-प्यासे होठों को
देकर ह्विस्की की बोतल
ढाल प्राण के प्यालों में
कलयुग का नव गंगाजल
इस दुनिया के होटल में
मौज उड़ाते मुस्टंडे।
चमचों को बादामगिरी
ख़ाली पेटों की थाली
अब भी ख़ाली-ख़ाली है
कल भी थी ख़ाली-ख़ाली
भ्रष्टाचारों के कर में
हैं सच्चाई के झंडे।
3 टिप्पणियाँ
nice and thanks
जवाब देंहटाएं-Alok Kataria
sundar
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता..बधाई
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.