
जहाँ में ऐसी सूरत है,जिन्हें देखा, नशा टूटा
खीज खुद पर हुई ,मुझ से मुकद्दर इस तरह रूठा।
मेरा बस एक सपना था मुझे जो खुद से प्यारा था
नजर ऐसी लगी उस को आईने की तरह टूटा।
अकेला एक दिल था जिन्दगी की वही दौलत था
उन्होंने चुप रह रह कर उसे पूरी तरह लूटा।
कहाँ जाता सफर को छोड़ मंजिल दूर थी मेरी
रुका थोडा सुकूँ पाया मगर मद की तरह झूठा।
रहा है उन का मेरा साथ वर्षों दूध शक्कर सा
शिकायत दिल में क्यों आई सब्र क्यों इस तरह टूटा।
7 टिप्पणियाँ
व्यथित जी बहुत अच्छी गीतिका है, बधाई स्वीकारे।
जवाब देंहटाएंयह नवगीत अच्छा बन पडा है।
जवाब देंहटाएंरहा है उन का मेरा साथ वर्षों दूध शक्कर सा
जवाब देंहटाएंशिकायत दिल में क्यों आई सब्र क्यों इस तरह टूटा।
बहुत खूब
सुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंनवगीत के विषय में ज्यादा नहीं खबर है |
क्या इसे नवगीत कहा जाए|
गेतीका कहा जाए तो दुरुस्त हो |
अवनीश तिवेअरी
सुन्दर मनोभावों से सजी रचना...
जवाब देंहटाएंअच्छी गीतिका...बधाई
जवाब देंहटाएंwow Bahut Acha I like it...jai bhole nath
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.