
वे तराजू के पलड़ों की तरह हैं
जिन्हें तौला जाता रहा है
बारी-बारी
कम और ज्यादा की तरह ।
फर्क सिर्फ इतना है कि
कुछ भुला दिये गये थे मरने से पहले
और कुछ भुला दिये जायेंगे मरने के बाद
हमेशा के लिये ।
रहेगी तो बस गिनती
उन सभी जमा सरकारी कागजों में
जो धूल चाटते हैं
बंद किसी कोने में ।
बावजूद इसके
भूख और नंगेपन के साथ
फिर से जमा हो जायेंगे
हाथ में बन्दूक लिए
मर गये या मार दिये गये
श्रेणी के लिए
अनगिनत उम्मीदवार
तुम बस खुश रहना
क्योंकि
फिलहाल तुम उनमें से कोई नहीं
4 टिप्पणियाँ
अच्छी कविता...बधाई
जवाब देंहटाएंsuperb hai !
जवाब देंहटाएंAvaneesh Tiwari
व्यवस्था और हालात पर चोट करती एक अच्छी रचना अनिल जी।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
www.manoramsuman.blogspot.com
bahut aachi rachna
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.