
मौत उसकी पनाह होती है।
जुर्म जितने हुए है धरती पर
आसमाँ की निगाह होती है।
आदमी आदमी को छलता है
आदिमीयत गवाह होती है।
दिल्लगी तुम किसीको मत कीजो
ज़िंदगी तक तबाह होती है।
ऐब दूजे के मत बता मुझको
ऐसी बातें गुनाह होती है।
गहरा सागर है दिल का दरिया भी
कब कहीं उनकी थाह होती है।
मिट गई सारी चाहतें देवी
एक बस तेरी चाह होती है।
5 टिप्पणियाँ
आदमी आदमी को छलता है
जवाब देंहटाएंआदिमीयत गवाह होती है।
bvahut khoob
बहुत सुन्दर ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंखूब बहुत खूब
जवाब देंहटाएंअच्छी गज़ल..बधाई
जवाब देंहटाएंअच्छे गज़ल पढ़ने को मिली. 'आदमीयत गवाह होती है' वाला शेर सब से बढ़िया...
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.