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बुलबुल का बच्चा [बाल कहानी] - डॉ0 मोहम्मद साजिद खान [बाल-शिल्पी अंक - 3]

प्यारे बच्चों,

कल चाचा नेहरू का जन्मदिन था और आप सबने उन्हे जरूर याद किया होगा। "बाल-शिल्पी" पर आज आपके डॉ. मो. अरशद खान अंकल आपके लिये ले कर आये हैं एक कहानी बुलबुल का बच्चा जिसके रचयिता हैं डॉ. मो. साजिद खान जो कि शाहजहाँपुर (उत्तरप्रदेश) के हैं। तो आनंद उठाईये इस अंक का और अपनी टिप्पणी से हमें बतायें कि यह अंक आपको कैसा लगा।

- साहित्य शिल्पी

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एक था बुलबुल का बच्चा, प्यारा और सलोना, पर बिलकुल अकेला। उसकी माँ किसी हादसे का शिकार हो गई थी। यह तो कहो उसने पहले ही माँ से उड़ने का अभ्यास कर लिया था, वरना आज के समय में दुखियों को पूछता कौन है ?

एक रात जब बच्चा सो रहा था तो एक घुमंतु उल्लू उधर आ निकला। उसे उसका घोसला बहुत प्यारा लगा। उसे लालच आ गई-’काश ! यह घर मेरा होता।’

उसने डरावनी आवाज़ें निकालनी शुरू कर दीं। बच्चे की नींद खुल गई। चारों ओर था घोर अंधेरा, झींगुरों की झनझनाहट, उस पर डरावनी आवाज़ें, बच्चा काँपने लगा।

जैसे-तैसे सुबह हुई। बच्चा रात की घटना सोचता रहा। धीरे-धीरे फिर रात घिरी। फिर वही काला-काला डरावना साया सामने आ कर ख़ौफ़नाक आवाज़ करने लगा-“जितनी जल्दी हो, यह घर छोड़ दो, वरना तुम्हें खा जाऊँगा।”

बच्चे की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई।

सुबह होते ही वह सहायता माँगने निकल पड़ा।

“मैना दीदी, मैना दीदी, मेरी सहायता करो।” कहते हुए उसने उनसे सारी बातें कह सुनाईं।

“मेरे भी तो छोटे बच्चे हैं।” मैना ने कहा-“अगर रात को मै उधर आई और मेरे बच्चों को कुछ हो गया तो ?

”बच्चा उदास होकर आगे बढ़ा। उसने मोरनी से कहा- “मोरनी आण्टी, मोरनी आण्टी, मेरी सहायता करो।”

“दिनभर के काम-धाम से थक जाती हूँ।” मोरनी ने कहा- “रात को मुझे बहुत नींद आती है.... आ... ऊ ऽऽऽ।” उसने उबासी ली।

बच्चा निराश हो गया। उसने गौरैया से विनती की- “मौसी, मेरी सहायता करो।”

इससे पहले बच्चा पूरी बात बोलता, गौरैया बोल उठी- “भई मैं तो अपने घर के लिए तिनके जोड़ रही हूँ, सहायता माँगने फिर कभी आना।”

बच्चा समझ गया कि अब उसकी सहायता कोई नहीं करेगा।

तभी उसकी दृष्टि कछुए पर पड़ गई- “कछुए चाचा, कछुए चाचा, मेरी सहायता करो न।” उसने सारी बात बताते हुए कहा।

“अरे पगले !” कछुए चाचा हँसकर बोले- “मैं पेड़ पर चढ़ नहीं सकता। फिर तेरी सहायता कैसे करूँगा ? हाँ, अगर भूत पकड़ लाओ तो मैं उसका शोरबा बनाकर अवश्य पी जाऊँगा।”

बच्चा पूरी तरह हताश हो गया। धीरे-धीरे शाम घिरने लगी। सामने के वृक्ष पर कौवे मामा रहते थे। उन्होंने अपने अनुभव से बच्चे की उदासी जान ली। तब बच्चे ने उन्हें सारी बातें बता दीं।

मामा स्नेह से बोले - “बेटा, वैसे तो मेरी बूढ़ी आँखों में रोशनी नहीं है। रात में मुझे साफ नहीं दिखता पर मैं तुम्हारी सहायता के लिए कुछ सोचता हूँ।”

उन्हें एक युक्ति आ गई। पड़ोस के वृक्ष पर उनके जुगनू मित्र थे, जो समय पड़ने पर अपनी नन्हीं लालटेनों से उन्हें रोशनी देते थे।

कौवे मामा की युक्ति से वे सहमत हो गए।

जब बच्चा वापस जाने लगा तो मामा ने समझाया - “बेटा, परिस्थितियों से डरना नहीं चाहिए। जो अपनी सहायता करता है, भगवान उसकी सहायता करते हैं।”

धीरे-धीरे रात गहराने लगी। तभी डरावनी आवाज़ आने लगी ।

आज बच्चा निडर था। बोला- “मूर्ख, आज तेरी मौत आई है।”

उल्लू बच्चे के इस व्यवहार से चौंका- “क्या मतलब ?”

“मैं आज तुझे जलाकर खाक कर दँूगा।” बच्चे ने कहा।

उल्लू हँसने लगा- “मैं भूत हूँ , तू मुझे जलाएगा ?”

“हाँ।” इतना कहकर बच्चे ने कुछ इशारा किया।

झुण्ड के झुण्ड टिमटिमाते हुए जुगनू उल्लू पर टूट पड़े।

अचानक हुए हमले से उल्लू घबरा गया।

उन्हें आग के गोले समझकर भाग खड़ा हुआ।

बच्चा खुशी से चहक उठा। उसने अपने नन्हें मित्रों को ढेरों धन्यवाद दिया।

फिर उस दिन के बाद कभी कोई डरावनी आवाज़ नहीं सुनाई दी। बच्चा चैन से रहने लगा।

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8 टिप्पणियाँ

  1. अपने मदद आप करने का सुन्दर संदेश है। सार्थक कहानी।

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  2. मनोरंजन और शिक्षाप्रद कहानी है।

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  3. kitni achchhi tarah aap ne khud ki sahayata ka path padha diya .
    bahut sunder kahani
    saader
    rachana

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  4. Dr. Mohammad sazid khan ki baal kahani " bulbul ka baccha" bahut hi acchi lgi..congrats.. www.deendayalsharma.blogspot.com

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