HeaderLarge

नवीनतम रचनाएं

6/recent/ticker-posts

पं. श्रीधर पाठक {हमारी धरोहर} [बाल शिल्पी अंक - 4] - डॉ. मो. अरशद खान

प्यारे बच्चों,

"बाल-शिल्पी" पर आज आपके डॉ. मो. अरशद खान अंकल आपको अपनी धरोहर से परिचित करायेंगे। आज आप जानेंगे रचनाकार पं श्रीधर पाठक को तथा पढेंगे आपके ही लिये लिखी गयी उनकी कुछ रचनायें भी। तो आनंद उठाईये इस अंक का और अपनी टिप्पणी से हमें बतायें कि यह अंक आपको कैसा लगा।

- साहित्य शिल्पी

----------------------

श्रीधर पाठक का जन्म 11 जनवरी 1960 को आगरा (उ0प्र0) जनपद के जोंधरी नामक गांव में हुआ था। हिंदी साहित्य का इतिहास उन्हें खड़ी बोली के उन्नायक और स्वच्छंदतावादी कवि के रूप में याद करता है। श्रीधर पाठक वह पहले कवि थे जिन्होंने बच्चों के लिए अलग से लेखन की जरूरत महसूस की। उनके ‘मनोविनोद’ नामक काव्य-संग्रह में बच्चों के लिए पहली बार अलग से कविताएं संकलित की गईं। आलोचकों के अनुसार पं0 श्रीधर पाठक ही हिंदी के पहले बाल-गीतकार हैं। आइए हम भी उनकी कुछ कविताओं का आनंद उठाते हैं-

मैना

सुन-सुन री प्यारी ओ मैना,
जरा सुना तो मीठे बैना।

काले पर, काले हैं डैना,
पीली चोंच, कंटीले नैना।

काली कोयल तेरी मैना,
यद्यपि तेरी तरह पढ़ै ना।

पर्वत से तू पकड़ी आई,
जगह बंद पिंजडे में पाई।

बानी विविध भांति की बोले,
चंचल पग पिंजड़े में डोले।

उड़ जाने की राह न पावै,
अचरज में आकर घबरावै।


देल छे आए !


बाबा आज देल छे आए,
चिज्जी-पिज्जी कुछ न लाए।

बाबा, क्यों नहीं चिज्जी लाए,
इतनी देल छे क्यों आए ?
कां है मेला बला खिलौना,
कलाकंद लड्डू का दोना ?

चूं-चूं गाने वाली चिलिया,
चीं-चीं कलने वाली गुलिया ?
चावल खाने वाली चुइया,
चुनिया, मुनिया, मुन्ना भैया ?

मेला मुन्ना, मेली गैया,
कां मेले मुन्ने की मैया ?
बाबा तुम औ कां से आए,
आं-आं चिज्जी क्यों न लाए ?


तीतर

लड़को, इस झाड़ी के भीतर,
छिपा हुआ है जोड़ा तीतर।
फिरते थे यह अभी यहीं पर,
चारा चुगते हुए जमीं पर।
एक तीतरी है इक तीतर,
हमें देखकर भागे भीतर।
आओ इनको जरा डराकर ,
ढेला मार निकालें बाहर।
यह देखो वह दोनो भागे,
खड़े रहो चुप, बढ़ो न आगे।
अब सुन लो इनकी गिटकारी,
एक अनोखे ढंग की प्यारी।
तीइत्तड़- तीइत्तड़- तीइत्तड़- तीइत्तड़
नाम इसी से इनका तीतर।

एक टिप्पणी भेजें

5 टिप्पणियाँ

  1. तीनों रचनाएँ सहज
    सरल भाषा में लिखी गयीं
    मन-मोहक बाल गीत हैं....

    आभार....और बधाई..


    गीता

    जवाब देंहटाएं
  2. बच्चों की तुतलाती बोली कितनी सुन्दर लगती है और उसी तर्ज पर लिखे ये गीत बहुत ही मनभावन हैं.

    जवाब देंहटाएं
  3. अनमोल संकलन और इसे प्रस्तुत करने के लिये डॉ. अरशद बधाई के पात्र हैं।

    जवाब देंहटाएं

आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.

आइये कारवां बनायें...

~~~ साहित्य शिल्पी का पुस्तकालय निरंतर समृद्ध हो रहा है। इन्हें आप हमारी साईट से सीधे डाउनलोड कर के पढ सकते हैं ~~~~~~~

डाउनलोड करने के लिए चित्र पर क्लिक करें...