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जिंदगी एक रिश्ता, एक फासला [कविता] - देवी नागरानी

कागज़ के कोरे पन्ने
जिँदगी तो नहीं
न ही काले रँग की पुतन
का नाम है जिँदगी.

"जिँदगी है एक रिशता"
एक लहर का दूजे से
धूप का छाँव से
दुख का सुख से
रात का दिन से
अँधेरे का रौशनी से.

"जिँदगी है एक फासला"
वो तो सूरज की
पहली किरण से शुरू होकर
उसी किरण के अस्त होने
तक का फासला है
जीवन की हद से,
मौत की सरहद तक का फ़ासला.

ज़िंदगी सुबह की पहली किरण है
मौत साँझ की आखिरी किरण है

यही जिँदगी है
यही उसकी हद है, और सरहद भी
यही जिंदगी है
एक रिशता भी, एक फासला भी.

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5 टिप्पणियाँ

  1. जिंदगी एक रिश्ता, एक सरहद, एक फासला ! वाह! ज़िन्दगी की पूरी पहचान है यह रचना। इस खेल की पारी हमारे हाथ में है, इसे जैसे चाहें खेलें । बधाई देवी जी ।
    सप्रेम,
    शशि पाधा

    जवाब देंहटाएं
  2. यही जिँदगी है
    यही उसकी हद है, और सरहद भी
    यही जिंदगी है
    एक रिशता भी, एक फासला भी

    जीवन के रहस्यों की परतें खोलती है नागरानी जी की कविता।

    जवाब देंहटाएं
  3. देवी जी अच्छी कविता है | बधाई |
    सुधा ओम ढींगरा

    जवाब देंहटाएं

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