
जिँदगी तो नहीं
न ही काले रँग की पुतन
का नाम है जिँदगी.
"जिँदगी है एक रिशता"
एक लहर का दूजे से
धूप का छाँव से
दुख का सुख से
रात का दिन से
अँधेरे का रौशनी से.
"जिँदगी है एक फासला"
वो तो सूरज की
पहली किरण से शुरू होकर
उसी किरण के अस्त होने
तक का फासला है
जीवन की हद से,
मौत की सरहद तक का फ़ासला.
ज़िंदगी सुबह की पहली किरण है
मौत साँझ की आखिरी किरण है
यही जिँदगी है
यही उसकी हद है, और सरहद भी
यही जिंदगी है
एक रिशता भी, एक फासला भी.
5 टिप्पणियाँ
DEVI JEE KO UNKEE ACHCHHEE KAVITA KE LIYE BADHAAEE .
जवाब देंहटाएंजिंदगी एक रिश्ता, एक सरहद, एक फासला ! वाह! ज़िन्दगी की पूरी पहचान है यह रचना। इस खेल की पारी हमारे हाथ में है, इसे जैसे चाहें खेलें । बधाई देवी जी ।
जवाब देंहटाएंसप्रेम,
शशि पाधा
यही जिँदगी है
जवाब देंहटाएंयही उसकी हद है, और सरहद भी
यही जिंदगी है
एक रिशता भी, एक फासला भी
जीवन के रहस्यों की परतें खोलती है नागरानी जी की कविता।
बहुत अच्छी कविता, बधाई
जवाब देंहटाएंदेवी जी अच्छी कविता है | बधाई |
जवाब देंहटाएंसुधा ओम ढींगरा
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.