
हाँ
बेमन से ही सही
कह रहा हूँ।
अब बस जारी है
मारने-मरने का खेल
या तो खाली करो गाँव,
या भुगतो जेल।
सिद्धांत तुम्हारे नहीं
तुम्हारे अतीत के रहे होंगे।
लक्ष्य भी, किसी और ने
तय किये होंगे।
तुमने नहीं।
अब तो निर्दोष खून बह रहा
यत्र-तत्र-सर्वत्र।
वरना क्रांति से कम नहीं
पोस्टकार्ड पर
लिख कर देखो
एक प्रेमपत्र।
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योगेन्द्र सिंह राठौर
ललिता कुंज
अशोका बस स्टैंड के पीछे,
नया बस स्टैंड रोड,
जगदलपुर
(छतीसगढ)
9 टिप्पणियाँ
योगेन्द्र भाई एसी कवितायें पढ कर सुकून होता है। गहरी बात कही है। आपकी अंतिम चार पंक्तियों में क्रांति का मर्म छिपा हुआ है।
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएं-Alok Kataria
वरना क्रांति से कम नहीं
जवाब देंहटाएंपोस्टकार्ड पर
लिख कर देखो
एक प्रेमपत्र।
समस्या का चित्र समाधान के साथ में खींचा गया है। कवि की सुन्दर सोच है।
I LIKED THE CONCEPT OF POEM.
जवाब देंहटाएंsoch aachi hai.Kam shabdo main gahari baat-badahai
जवाब देंहटाएंकवि की बात में बहुत दम है। बिना बडी बहस या जिरह के एक बडे उन्माद को राह दिखा दी है।
जवाब देंहटाएंjanvadi samajha viksit karni chahiye. mujhe lagta hai ki ye kavit rashtravadiyo ki soch ke jaisi hai
जवाब देंहटाएंJISE BHEJA HAI SANDESH
जवाब देंहटाएंVE PADH LE SAMJHE IS APNA DESH
वरना क्रांति से कम नहीं
जवाब देंहटाएंपोस्टकार्ड पर
लिख कर देखो
एक प्रेमपत्र।
bahut khoob
saader
rachana
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