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एक प्रेमपत्र [कविता] - योगेन्द्र सिंह राठौर

साथी
हाँ
बेमन से ही सही
कह रहा हूँ।

अब बस जारी है
मारने-मरने का खेल
या तो खाली करो गाँव,
या भुगतो जेल।
सिद्धांत तुम्हारे नहीं
तुम्हारे अतीत के रहे होंगे।
लक्ष्य भी, किसी और ने
तय किये होंगे।
तुमने नहीं।
अब तो निर्दोष खून बह रहा
यत्र-तत्र-सर्वत्र।

वरना क्रांति से कम नहीं
पोस्टकार्ड पर
लिख कर देखो
एक प्रेमपत्र।

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योगेन्द्र सिंह राठौर
ललिता कुंज
अशोका बस स्टैंड के पीछे,
नया बस स्टैंड रोड,
जगदलपुर
(छतीसगढ)

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9 टिप्पणियाँ

  1. योगेन्द्र भाई एसी कवितायें पढ कर सुकून होता है। गहरी बात कही है। आपकी अंतिम चार पंक्तियों में क्रांति का मर्म छिपा हुआ है।

    जवाब देंहटाएं
  2. वरना क्रांति से कम नहीं
    पोस्टकार्ड पर
    लिख कर देखो
    एक प्रेमपत्र।

    समस्या का चित्र समाधान के साथ में खींचा गया है। कवि की सुन्दर सोच है।

    जवाब देंहटाएं
  3. कवि की बात में बहुत दम है। बिना बडी बहस या जिरह के एक बडे उन्माद को राह दिखा दी है।

    जवाब देंहटाएं
  4. janvadi samajha viksit karni chahiye. mujhe lagta hai ki ye kavit rashtravadiyo ki soch ke jaisi hai

    जवाब देंहटाएं
  5. JISE BHEJA HAI SANDESH
    VE PADH LE SAMJHE IS APNA DESH

    जवाब देंहटाएं
  6. वरना क्रांति से कम नहीं
    पोस्टकार्ड पर
    लिख कर देखो
    एक प्रेमपत्र।
    bahut khoob
    saader
    rachana

    जवाब देंहटाएं

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