
और,
मन की गहराई तक।
जीवन के प्रस्फुटन से,
मृत्यु के क्षणों तक।
उलझा है मानव
कामनाओं के जाल में।
पावस की काली रात्रि में,
जुगनुओं का टिमटिमाना।
महासागर के क्रोड में,
चंद बूदों का समा जाना।
क्षण-भंगुर जीवन में,
श्वासों का आना जाना।
दीप-शिखा के आकर्षण में,
पतंगों का मिट जाना।
जीवन क्या है?
कुछ खोना, कुछ पाना
चंद लमहों की यही कहानी है।
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रचनाकार परिचय
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कवि: के. एल श्रीवास्तव
जन्म: 10.03.1934
शिक्षा: एम. ए (इतिहास)
संपर्क: आस्थायन, डोकरीघाट पारा
जगदलपुर
3 टिप्पणियाँ
भाषा की दृष्टि से कसी हुई और भाव की दृष्टि से अनुपम कविता है।
जवाब देंहटाएंजीवन दर्शन है कविता मै
जवाब देंहटाएंjivan ka gud arth samjhati rachna --bahut sunder --badahai
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.