
सम्पूर्ण कलाओं से परिपूरित,
आज कलानिधि दिखे गगन में
शीतल, शुभ्र ज्योत्स्ना फ़ैली,
अम्बर और अवनि आँगन में
शक्ति, शांति का सुधा कलश,
उलट दिया प्यासी धरती पर
मदहोश हुए जन जन के मन,
उल्लसित हुआ हर कण जगती पर
जब आ टकरायीं शुभ्र रश्मियाँ,
अद्भुत, दिव्य ताज मुख ऊपर
देदीप्यमान हो उठी मुखाभा,
जैसे, तरुणी प्रथम मिलन पर
कितना सुखमय क्षण था यह,
जब औषधेश सामीप्य निकटतम
दुःख और व्याधि स्वतः विच्छेदित,
कर अनन्य आशिष अनुपम।
5 टिप्पणियाँ
sukhad ahsas karati rachna badahai
जवाब देंहटाएंआपकी भाषा बहुत प्रभावित करती है
जवाब देंहटाएंकविता मै काव्य को पाकर achha लगता है, वरना समकालीन कविता से तो मानो काव्य चोरी ही हो गया है...
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात आदरणीय
जवाब देंहटाएंएक श्रेष्ठ कविता के सन्मुख हूँ आज
सोमवार को शरद पूर्णिमा है
और यह कविता सटीक है इस अवसर पर
इसे पुनः प्रकाशित कर रही हूँ..
अपने ब्लाग में आपके नाम के साथ
सादर
यशोदा
बहुत ही सुन्दर कविता लिखे है ! बहुत बहुत धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.