
[....... यथार्थ में आतंकवाद का दोषी कौन ... क्या वो हाथ जिन्हें जन्म लेते ही बंदूक थमा दी गयी हैं अथवा वो मस्तिष्क जो अपने स्वार्थ के लिये आतंक की फैक्ट्री चलाते हैं " स्वर अब तक कानों में गूंज रहे हैं ...]
26/11 का आतंकवादी हमला. सम्पूर्ण घटनाक्रम के वीभत्स दृश्य ----- उपरांत ..... आज भी मस्तिष्क में ताजा हैं. सारे राष्ट्र में विभिन्न मंचों पर पक्ष विपक्ष में गरमागरम बहस के बीच बंद मुठ्ठी में फंसी रेत की तरह आज एक और वर्ष फिसल गया. गढ़्चिरौली में नक्सली गुटों द्वारा मारे गये 17 पुलिसवालों के रोते विलखते परिवारॊं ... तथा टी वी पर छिड़ी नक्सल आंदोलन के पक्ष विपक्ष में बहस से आहत मन को चारो ओर पांव पसारते आतंक के वर्तमान परिवेश में पिछले दिनों स्कूल के बच्चों में आतंकवाद पर छिड़ी बह्स में एक बच्चे के शब्द “ ...... मेरे पूर्वजों ने मेरे पीछे की पीढ़ी को एक शांत वातावरण दिया .. किन्तु आज हमारे अभिभावक समाज ने हमें चारों ओर आतंक की चीख पुकार क्यों दी है ....... यथार्थ में आतंकवाद का दोषी कौन ... क्या वो हाथ जिन्हें जन्म लेते ही बंदूक थमा दी गयी हैं अथवा वो मस्तिष्क जो अपने स्वार्थ के लिये आतंक की फैक्ट्री चलाते हैं " स्वर अब तक कानों में गूंज रहे हैं अंग्रेजी में दिये हुये भाषण की वीडिओ के कुछ अंश हमारे आत्म मंथन के लिये पर प्रस्तुत है इसे देखें सुने और अनुभव करें. प्रस्तुत वीडिओ के प्रश्नों के आलोक में सोचें कि आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी अभियान में विगत एक वर्ष में हमने कोई सकारात्मक सहयोग किया है अथवा कुछ और किया जा सकता है. आपकी प्रतिक्रिया की मुझे व्यग्रता से प्रतीक्षा रहेगी ...
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आतंकवाद का दोषी कौन
धरती के फूल
उग आए हैं इस बार....
राजनीति की आँधी,
और आतंक की बेमौसम
'मुंबई बरसात' से
होती हैं जड़ें बहुत गहरी
सुना है पाताल तक ...
धरती के फूल की
कंक्रीट के जंगल में
पांचसितारा संस्कृति में
परोसे जाने वाले व्यंजन ने
फैला दी है अपनी
खेत खलिहान ...
विलोपित जंगलों से लाई
खालिश देशज उर्जा
..और माटी की गंध सड़कों पर
धरती के फूल ......
यानी कुकुरमुत्ते की जाति...
उगते हैं उसी जगह
जहाँ करते हैं बहुधा 'कुत्ते'
टांग उठाने की राजनीति
गाँव की 'विलुप्त-बिजली के खम्भे' पर
प्रधान जी के 'स्कूलनुमा-बारातघर' में
अथवा 'भीड़तंत्री-गाड़ी' के
'अन्तुलाते' पहिये पर
वोटबैंक की तुच्छ बीमारी से लाचार.. ..
सत्तालोलुपता से दंशित राष्ट्र
पी सकेगा क्या ...?
इसबार ......
राष्ट्रीय स्वाभिमान का
उर्जावान पंचसितारा सूप
मिट्टी से पैदा धरती के फूल का
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5 टिप्पणियाँ
हम लोग आतंकवाद की बरसियाँ ही मनाते रहेंगे या दोषियों को कभी सजा भी होगी?
जवाब देंहटाएंधरती के फूल ......
जवाब देंहटाएंयानी कुकुरमुत्ते की जाति...
उगते हैं उसी जगह
जहाँ करते हैं बहुधा 'कुत्ते'
टांग उठाने की राजनीति
गाँव की 'विलुप्त-बिजली के खम्भे' पर
प्रधान जी के 'स्कूलनुमा-बारातघर' में
अथवा 'भीड़तंत्री-गाड़ी' के
'अन्तुलाते' पहिये पर
वोटबैंक की तुच्छ बीमारी से लाचार.. ..
सत्तालोलुपता से दंशित राष्ट्र
पी सकेगा क्या ...?
जवाब मिले तो हमे भी बताईयेगा।
अच्छा आलेख..बधाई
जवाब देंहटाएंnice article and video
जवाब देंहटाएं- Alok Kataria
the video clip shown on declamation contest and miss aparjitha misra speech on terrorism is heart touching and real thought provoking. rather than simply criticising the terrorism, she makes it a point what could be motivating a terrorist that he gets into such gruesome actions. nice thought aparjita, thats where to hit the core for the real solution.best wishes. shabbirmarur@gmail.com
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.