
ठहरी जिंदगी
फिर से चलने लगी है.
एक दिन तांडव मचाकर
चले गए कुछ सिरफिरे
ली कुछ लोगों की जानें
जिनके लिये
जान नहीं
महज संख्या थी
फिर दिखे नहीं.
अब...
गॉंव की सरहद पर
संगीन का पहरा
रोज फिसलती है
बहु-बेटियों पर
इनकी वहशी नजरें
और...
रोज अटक जाती है जान.
गॉंव के स्कूल के बच्चे
याद नहीं कर पाते
गीत, कविता, कहानियॉं
बदले में पूछते हैं सवाल
आसमान का रंग काला क्यों है,
खिलौना किसे कहते हैं
गॉंव के बाहर
सड़क के नीचे
क्यों बिछी है बारुद
कैसे भरते हैं बंदूक में गोलियॉं
खेतों में क्यों नहीं उगती फसलें
कैसी होती है राखी
माँ किसे कहते हैं।
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कवि परिचय
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नाम: डॉ. सुरेश तिवारी
जन्मतिथि: 16 मार्च, सन् 1958
जन्मस्थान: बिलासपुर, छत्तीसगढ़
शिक्षा: [एम.ए. - हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, समाजशास्त्र, इतिहास, राजनीति विज्ञान, अर्थशास्त्र,लोक प्रशासन, ग्रामीण विकास (एमएआरडी), भूगोल] [पीएचडी - समाजशास्त्र] [एल.एल.बी.] [आयुर्वेद रत्न]
प्रकाशित कृतियॉं: जीवनयात्रा (कविता संग्रह), आओ सैर करें (बस्तर के पर्यटन स्थल), नदी बोलती है (कविता संग्रह), मॉं दंतेश्वरी (ऐतिहासिक), टूटते बिखरते लोग (कहानी संग्रह)
6 टिप्पणियाँ
रचना का अर्थ गहरा है | शिल्प और असरदार हो तो और प्रभावकारी बने |
जवाब देंहटाएंसुरेशजी की शैक्षणिक उपलब्धी बेमिशाल है | आपको बधाई |
अवनीश तिवारी
acchi rachana
जवाब देंहटाएंबहुत खूब। बहुत खूब। संवेदना से भरे हुई।
जवाब देंहटाएंगॉंव के स्कूल के बच्चे
जवाब देंहटाएंयाद नहीं कर पाते
गीत, कविता, कहानियॉं
बदले में पूछते हैं सवाल
आसमान का रंग काला क्यों है
इस माहौल से यही सवाल बनते हैं। अच्छी रचना।
sahi farmaya aap ne--yahi to chal raha hai--ye sach hame kahan le jayega pata nahi --sunder rachna badahai
जवाब देंहटाएंकविता की गहराई कम है
जवाब देंहटाएंपर बाते गहरी है
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.