
फूल सुबह से देखो कैसे
ताजे ताजे खिलते
हमसे तुमसे सबसे कैसे
हँसते हँसते मिलते|
तितली आती भौंरे आते
फूल कभी न डरते
पीते कितना भी मधु पराग
इंकार कभी न करते|
देते सुगंध महका आंगन
मन के दुख को वे हरते
देते सबको ढेरों खुशियाँ
अभिमान कभी न करते|
बड़े बड़े मंदिर समाधि
और देवों के सिर चढ़ते
धर्म भले लड़ते आपस में
फूल कभी न लड़ते|
इनके पद चिन्हों पर यदि
इंसान आज के चलते
स्नेह प्रेम बढ़ता आपस में
न संबंध बिगड़ते|
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रचनाकार परिचय
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नाम- पी. दयाल श्रीवस्तव  जन्म- 4 अगस्त 1944 धरमपुरा दमोह {म.प्र.] शिक्षा- वैद्युत यांत्रिकी में पत्रोपाधि लेखन- विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन कृतियां - दूसरी लाइन [व्यंग्य संग्रह]शैवाल प्रकाशन गोरखपुर से प्रकाशित, बचपन गीत सुनाता चल[बाल गीत संग्रह]बाल कल्याण एवं बाल साहित्य शोध केन्द्र भोपाल से प्रकाशित, बचपन छलके छल छल छल[बाल गीत संग्रह]बाल कल्याण एवं बाल साहित्य शोध केन्द्र भोपाल से प्रकाशित सम्मान - राष्ट्रीय राज भाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा "भारती रत्न "एवं "भारती भूषण सम्मान", श्रीमती सरस्वती सिंह स्मृति सम्मान वैदिक क्रांति देहरादून एवं हम सब साथ साथ पत्रिका दिल्ली, द्वारा "लाइफ एचीवमेंट एवार्ड", भारतीय राष्ट्र भाषा सम्मेलन झाँसी द्वारा" हिंदी सेवी सम्मान", शिव संकल्प साहित्य परिषद नर्मदापुरम होशंगाबाद द्वारा"व्यंग्य वैभव सम्मान", युग साहित्य मानस गुन्तकुल आंध्रप्रदेश द्वारा काव्य सम्मान। |
7 टिप्पणियाँ
nice
जवाब देंहटाएं-Alok Kataria
अच्छी कविता...बधाई
जवाब देंहटाएंबड़े बड़े मंदिर समाधि
जवाब देंहटाएंऔर देवों के सिर चढ़ते
धर्म भले लड़ते आपस में
फूल कभी न लड़ते|
sandesh bhi aur kavita bhi. baccho ko achchi lagegi
sundar baal geet...aabhaar...
जवाब देंहटाएंsuder aur sandesh deti ek pyari se rachna badahai
जवाब देंहटाएंसभी प्रसंशकों को धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंप्रभुदयाल श्रीवास्तव
thanks
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.