HeaderLarge

नवीनतम रचनाएं

6/recent/ticker-posts

चाँद की छुवन [गीतिका] - मोहिन्दर कुमार

तुम मिले तो धूप भी,छत-मकान हो गई
झुक गई थी जो नजर,तन कमान हो गई

राह की दुशवारियों से, अब कोई शिकवा नहीं
साथ जो तेरा मिला, मेरी राहें आसान हो गई

सिमटी सी चाहतों को जैसे, पँख हों मिल गये
हसरतें फ़िर से आज एक, खुली उडान हो गई

दिल से निकल बरसों, होठों पर जो रुकी रही
वो अनकही बातें सभी, खुलकर बयान हो गई

इक तमन्ना उदास लहरों पर, डूबती उतराती रही
छू लिया झुककर चांद ने जब, आसमान हो गई

रात के अंधेरों में रंग,सूर्ख-चाँदनी का भर गया
छोटी सी दुनिया मेरी, तारों का जहान हो गई

एक टिप्पणी भेजें

5 टिप्पणियाँ

  1. दिल से निकल बरसों, होठों पर जो रुकी रही
    वो अनकही बातें सभी, खुलकर बयान हो गई

    इक तमन्ना उदास लहरों पर, डूबती उतराती रही
    छू लिया झुककर चांद ने जब, आसमान हो गई

    बहुत खूब।

    जवाब देंहटाएं
  2. तुम मिले तो धूप भी,छत-मकान हो गई
    झुक गई थी जो नजर,तन कमान हो गई

    अच्छी रचना

    जवाब देंहटाएं

आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.

आइये कारवां बनायें...

~~~ साहित्य शिल्पी का पुस्तकालय निरंतर समृद्ध हो रहा है। इन्हें आप हमारी साईट से सीधे डाउनलोड कर के पढ सकते हैं ~~~~~~~

डाउनलोड करने के लिए चित्र पर क्लिक करें...