
कभी छिपी तो कभी मुखर बन, अश्रु हास बन बन बहती है
हाँ व्यथा सखी, हर घर रहती है..
बिछुडे स्वजन की याद कभी, निर्धन की लालसा ज्योँ थकी थकी,
हारी ममता की आँखोँ मेँ नमी, बन कर, बह कर, चुप सी रहती है,
हाँ व्यथा सखी, हर घर रहती है!
नत मस्तक, मैँ दिवला, बार नमूँ
आरती, माँ, महालक्ष्मी मैँ तेरी करूँ,
आओ घर घर माँ, यही आज कहूँ,
दुखियोँ को सुख दो, यह बिनती करूँ,
माँ, देक्ग, दिया, अब, प्रज्वलित कर दूँ!
दीपावली आई फिर आँगन, बन्दनवार, रँगोली रची सुहावन!
किलकारी से गूँजा रे प्राँगन, मिष्ठान्न अन्न धृत मेवा मन भावन!
देख सखी, यहाँ फूलझडी मुस्कावन!
जीवन बीता जाता ऋउतुओँ के सँग सँग,
हो सबको, दीपावली का अभिनँदन!
नव -वर्ष की बधई, हो, नित नव -रस!
4 टिप्पणियाँ
kya khoob likha hai-bahut manbhavan rachna badahi
जवाब देंहटाएंPRABHAVSHALI BHAVABHIVYATI KE LIYE LAVANYA JI
जवाब देंहटाएंKO BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA.
बहुत सुन्दर रचना। दीपावली की शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंमेरे परम प्रिय व आराध्य श्री कृष्ण ,
जवाब देंहटाएंमेरी परम सुन्दरी राधेरानी के संग
ह्रदय में बिराजें और आप सब पर उनकी कृपा बरसती रहे ....
धन तेरस , दीपावली, भारतीय नूतन वर्ष, भैया - दूज सारे त्यौहार शुभ व मंगल मय हों -
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