HeaderLarge

नवीनतम रचनाएं

6/recent/ticker-posts

दूजा नया सफर है [ग़ज़ल] - श्यामल सुमन

निकला हूँ मैं अकेला अनजान सी डगर है,
कोई साथ आये, छूटे मंजिल पे बस नजर है|

महफिल में मुस्कुराना मुश्किल नहीं है यारो,
जो घर में मुस्कुराये समझो उसे जिगर है|

पी करके लड़खड़ाना और गिर के सम्भल जाना,
इक मौत जिन्दगी की दूजा नया सफर है|

जब सोचने की ताकत और हाथ भी सलामत,
फिर बन गए क्यों बेबस किस बात की कसर है|

हम जानवर से आदम कैसे बने ये सोचो,
क्यों चल पड़े उधर हम पशुता सुमन जहर है|

एक टिप्पणी भेजें

4 टिप्पणियाँ

आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.

आइये कारवां बनायें...

~~~ साहित्य शिल्पी का पुस्तकालय निरंतर समृद्ध हो रहा है। इन्हें आप हमारी साईट से सीधे डाउनलोड कर के पढ सकते हैं ~~~~~~~

डाउनलोड करने के लिए चित्र पर क्लिक करें...