HeaderLarge

नवीनतम रचनाएं

6/recent/ticker-posts

दीपावली का एक जुदा मंज़र [नज़्म] - दीपक शर्मा

हर बाम पर रोशन काफ़िला - ए - चिराग़
हर बदन पर कीमती चमकते हुए लिबास
हर रूख पर तबस्सुम की दमकती लहर
लगती है शब भी आज कि जैसे हो सहर
माहौल खुशनुमा है या खुदा इस कदर
दिखता है कभी कभी ऐसा बेनज़ीर मंज़र ।

मैं सोचता चल रहा हूँ अपने घर कि ओर
कहाँ चली गई तारिकियाँ ,कहाँ बेबसी का ज़ोर
कहाँ साये - ग़म खो गये , कहाँ निगाह से आब
कहाँ खामोशियाँ लबों की , कहाँ आहों का शोर ।

पुरा शहर किस तरह झिलमिला रहा है
ज़र्रा - ज़र्रा बस्तियों का नज़्म गा रहा है ।
डूबा इसी ख्याल में जब मैं अपना दर
खोलता हूँ तो दिखती हैं खामोशियाँ, तन्हाईया
पूरे शहर की तीरगी , पूरे शहर का दर्द
पूरे शहर की बेबसी और आह की परछाइयाँ ॥

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ

आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.

आइये कारवां बनायें...

~~~ साहित्य शिल्पी का पुस्तकालय निरंतर समृद्ध हो रहा है। इन्हें आप हमारी साईट से सीधे डाउनलोड कर के पढ सकते हैं ~~~~~~~

डाउनलोड करने के लिए चित्र पर क्लिक करें...