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धरोहर में भवानीप्रसाद मिश्र [बाल शिल्पी अंक -6] - डॉ. मो.अरशद खान

प्यारे बच्चों,

"बाल-शिल्पी" पर आज आपके डॉ. मो. अरशद खान अंकल आप के लिये पहले तो नये वर्ष की ढेर सारी शुभकामनायें ले कर आये हैं। साथ ही आपको साहित्य की धरोहर से परिचित कराने के लिये वे ले कर आये हैं सुप्रसिद्ध साहित्यकार भवानी प्रसाद मिश्र का परिचय और उनकी किछ कवितायें। तो आनंद उठाईये इस अंक का और अपनी टिप्पणी से हमें बतायें कि यह अंक आपको कैसा लगा।

- साहित्य शिल्पी
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भवानी प्रसाद मिश्र का जन्म 29 मार्च 1913 को होशंगाबाद (म0प्र0) के टिगरिया नामक स्थान पर हुआ। प्रायः उनकी चर्चा ‘दूसरा सप्तक’ के प्रमुख कवि के रूप में होती है। अपनी गांधीवादी विचारधारा और सीधी-सादी भाषा के लिए वह विशेष चर्चित रहे हैं। एक दौर में उनकी कविता-‘जी हां, मैं गीत बेचता हूं ’(गीत फरोश) बहुत मशहूर हुई। उनकी पुस्तक ‘बुनी हुई रस्सी’ पर वर्ष 1972 में साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। उनके द्वारा लिखी कृतियों की संख्या एक दर्जन से ऊपर है। बच्चों के लिए उन्होंने एक पुस्तक ‘तुकों के खेल’ लिखी है, जिसमें विभिन्न विषयों पर सुंदर कविताएं हैं। भवानी प्रसाद मिश्र की मृत्यु 20 फरवरी 1985 में हुई।

यहां प्रस्तुत हैं ‘तुकों के खेल’ संग्रह से कुछ कविताएं--

साल शुरू हो-साल खत्म हो

साल शुरु हो दूध-दही से,
साल खत्म हो शक्कर-घी से,
पिपरमेंट, बिस्किट, मिसरी से,
रहें लबालब दोनों खीसें।

मस्त रहें सड़कों पर खेलें,
नाचें-कूदें गाएं-ठेलें,
ऊधम करें मचाएं हल्ला
रहें सुखी भीतर से जी से।

सांझ रात दोपहर सवेरा,
सबमें हो मस्ती का डेरा,
कातें सूत बनाए कपड़े
दुनिया में क्यों डरें किसी से?

पंक्षी गीत सुनाए हमको,
बादल बिजली भाए हमको,
करें दोस्ती फूल पेड़ से,
लहर-लहर से नदी-नदी से।

आगे-पीछे ऊपर-नीचे,
रहें हंसी की रेखा खींचे,
पास-पड़ोस गांव-घर-बस्ती,
प्यार ढेर भर करें सभी से।

भाई चारा

अक्क्ड़-मक्क्ड़ धूल में धक्कड़,
दोनों मूरख दोनों अक्खड़,
हाट से लौटे, ठाठ से लौटे,
एक साथ इक बाट से लौटे।

बात-बात में बात ठन गई,
बांह उठी और मूंछ तन गई,
इसने उसकी गर्दन भींची,
उसने इसकी दाढ़ी खींची।

अब वह जीता, अब यह जीता,
दोनों का बढ़ चला फजीता,
लोग तमाशाई जो ठहरे,
सबके खिले हुए थे चेहरे।

मगर एक कोई था फक्कड़,
मन का राजा कर्रा-कक्कड़,
बढ़ा भीड़ को चीर-चार कर,
बोला ‘ठहरो’ गला फाड़कर।

उसने कहा सही वाणी में,
‘डूबो चुल्लू भर पानी में,
ताकत लड़ने में मत खोओ,
चलो भाई-चारे को बोओ।’

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8 टिप्पणियाँ

  1. साल शुरु हो दूध-दही से,
    साल खत्म हो शक्कर-घी से,
    पिपरमेंट, बिस्किट, मिसरी से,
    रहें लबालब दोनों खीसें।

    अरशद जी आपको भी नये साल की शुभकामनायें। यह अनुपम प्रस्तुति है।

    जवाब देंहटाएं
  2. भवानी प्रसाद मिश्र जी पर और उनकी रचनाओं पर केन्द्रित यह स्तम्भ अच्छा लगा। स्कूल में छुट्टिया समाप्त होते ही बच्चों के बीच यह लेख मैं बांटूंगी।

    जवाब देंहटाएं
  3. Happy New Year Dr. Arshad and all the readers of Sahitya Shilpi. i love this E-magazine.

    जवाब देंहटाएं
  4. मिश्र जी की बडी ही सुन्दर सुन्दर कवितायें चुनी हैं। आभार डॉ. अरशद।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही सुन्दर कविता चुनी..बधाई

    जवाब देंहटाएं
  6. नये साल की शुभकामना के साथ इस प्रस्तुति के लिये आभार।

    जवाब देंहटाएं
  7. भवानी प्रसाद एक सफल रचनाकार थे |

    अक्क्ड़-मक्क्ड़ धूल में धक्कड़,
    दोनों मूरख दोनों अक्खड़,
    इसे मैं कभी नहीं भूल सकता और यह आज तक कंठस्थ है |

    धन्यवाद |


    अवनीश तिवारी
    मुम्बई

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