
”मार दो गोली मुझे, छोडनामत ”
” मरने के लिए उतावला है यार तू ? क्या बात है तेरी हिम्मत की? यहां तो अच्छे अच्छे नाक रगडते है। ”
‘‘मरना तो है ही तो मै क्यो गिडगिडाऊ तुम जैसे देशद्रोहियों के आगे।”
”तू कौन सा दूध का धुला है चार मर्डर किये हैं न तूने?”
”किया है मैने मर्डर, पर कारण मेरा निजी था तुम्हारी तरह देश या समाज का नुकसान नही किया, तुम तो मारते भी हो, जीने की सजा देते हो मौत से बदतर। विकास रोकते हो, गांव तो गांव पूरे ब्लाक का, जिले का। तुम देशद्रोही हो, तुम तो नक्सली हो और किसी हत्यारे से अधिक बडे अपराधी। मार दो मुझे कोई डर नही।"

कहानी - सनत कुमार जैन
जगदलपुर (बस्तर)
6 टिप्पणियाँ
सनत की लघुकथा में उम्मीद की किरण दिखाई पडती है। पहली बात है यह कहानी उस जगह से निकल कर बाहर आयी है जो एसे आतंकवाद से जूझ रहा है जिसमें आतंकवादी स्वयं को क्रांतिकारी कह कर महिमामंडन करते हैं। आतंकवाद के खिलाफ मन में छुपे आक्रोश को लेखन के लघुकथा का रूप दे दिया है।
जवाब देंहटाएंसनत जी हत्यारा और नक्सली दो पात्रों के संवादों के माध्यम से आपनें माओवाद पर सशक्त प्रहार किया है। समाज के अपराधी निश्चित रूप से अक्षम्य हैं।
जवाब देंहटाएंविमर्श योग्य लघुकथा
जवाब देंहटाएंयुवा कथाकार सनत जी को मै इस साल मै हर साहित्यिक पात्रिका मै पड रहा हुं. प्रस्तुत लघु कथा नक्सली आतन्क लो झेल रहे बस्तर के दर्द को ही स्पस्ट करती है.
जवाब देंहटाएंEk sashakt laghukathaa. Abhinandan Sanat kumaar jii.
जवाब देंहटाएंअच्छी लघुकथा...
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.