
समीक्षक ने फलां पुस्तक की समीक्षा कुछ इस प्रकार की, ‘‘प्रस्तुत पुस्तक में त्रुटियाँ है। ये है, वो है, ऐसा नहीं लिखना चाहिए था, ऐसा लिखा होना चाहिए था।
समीक्षक ने क़िताब की वास्तविकता से रूबरू करवाने की भरपूर कोशिश की। लेकिन सम्पादक महोदय ने इस समीक्षा को यह कहकर निरस्त कर दिया कि युवा लेखक है। निरूत्साहित की जगह उत्साहित करना चाहिए।
कुछ समय बाद समीक्षक को पता चला कि फलां लेखक सम्पादक का भक्त था।
7 टिप्पणियाँ
साहित्य जगत की निर्भय हो कर पोल खोल दी है।
जवाब देंहटाएंकटु सत्य का प्रस्तुतिकरण
जवाब देंहटाएंसत्य है..
जवाब देंहटाएंलेखन हमेश निर्भीक ही होना चाहिए... आभार
जवाब देंहटाएंअच्छा कटाक्ष .... .. सम्पादक महोदय को प्रकाशन भी तो चलाना है. हा हा
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें
boss, full support karata hun aapkee baat ko.
जवाब देंहटाएंAvaneesh tiwari
Mumbai
achi hai
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.