
लौट आऊँ तो बात करूँ
आँचल बाँधी गठरी को
खोल आऊँ तो बात करूँ
मन की मुट्टी झर-झर झरते
रेत कणों से बीते पल
नयनों के कोरों में घिर-घिर
बदरा से बरसते पल
अंजुरी में उन बूँदों को
भर पाऊँ तो बात करूँ
पलक सिरहाने कब से रखीं
बचपन की कुछ भोली घड़ियाँ
हर पल सुधियाँ गूँथा करतीं
प्रथम प्रणय की मुक्तक लड़ियाँ
मोती की उन कणियों को
चुन पाऊँ तो बात करूँ
नदी किनारे छोड़ आई थी
प्रीत पगी नीलम सी साँझ
सीपी की डिबिया में पलती
तेरी - मेरी साँझी साँझ
अनछूई उन निधियों को
छू पाऊँ तो बात करूँ
10 टिप्पणियाँ
एक मीठास लिए गीत है |
जवाब देंहटाएंशिल्प, लय और अर्थ सब संतुलित है |
बधाई|
अवनीश तिवारी
कितनी मीठी कविता है, बधाई शशि जी।
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएं-Alok Kataria
अनन्या नें मेरे मन की बात लिखी है। एसी कविताये बार बार पढने की इच्छा होती है।
जवाब देंहटाएं... sundar rachanaa !!!
जवाब देंहटाएंदुबारा पढ़ा और टिप्पणी देने से ना रूक सका |
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना है |
अवनीश तिवारी
शशि जी वाह -वाह ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गीत है ....
यादों के गलियारों से
लौट आऊँ तो बात करूँ
आँचल बाँधी गठरी को
खोल आऊँ तो बात करूँ
आप के गीत बहुत सुन्दर होते हैं पर इसे तो कई बार पढ़ है |
सुधा ओम ढींगरा
नदी किनारे छोड़ आई थी
जवाब देंहटाएंप्रीत पगी नीलम सी साँझ
सीपी की डिबिया में पलती
तेरी - मेरी साँझी साँझ
अनछूई उन निधियों को
छू पाऊँ तो बात करूँ
kitna pyara geet man ki hagraiyon ko chhuta huaa
badhai
saader
rachana
Shashi ji ko padhna ek sukhad ahsaas bhar deta hai man mein..Dil se dil tak ka pul banti hui unki shabdavali
जवाब देंहटाएंयादों के गलियारों से
लौट आऊँ तो बात करूँ
आँचल बाँधी गठरी को
खोल आऊँ तो बात करूँ
Bahut hi anookool anubhuti!
man mohak sunder rachna --badahai
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.