
चाँद आसमान में निकल रहा,
श्याम रूप रात का बदल रहा !
मुँह पुनीत प्यार से भरा हुआ,
मन सरल दुलार से भरा हुआ,
आ रहा किसी सुदेश से अभी,
मंद - मंद मुसकरा रहा तभी !
साथ रोशनी नयी लिए हुए,
वेश मौन साधु-सा किए हुए ;
नींद का संदेश भेजता हुआ ,
स्वप्न भूमि पर बिखेरता हुआ,
दूर के पहाड़ से सरक-सरक,
झूल पेड़-पेड़ में, झलक-झलक,
और है न ध्यान, खेल में मगन,
सिर्फ़ एक दौड़ की लगी लगन !
आसमान चढ़ रहा बिना रुके,
ढाल औ' चढ़ाव पर बिना झुके !
चाँद का बड़ा दुरूह काज है,
व्योम का तभी न चाँद ताज है !
महेन्द्र भटनागर जी वरिष्ठ रचनाकार है जिनका हिन्दी व अंग्रेजी साहित्य पर समान दखल है। सन् 1941 से आरंभ आपकी रचनाशीलता आज भी अनवरत जारी है। आपकी प्रथम प्रकाशित कविता 'हुंकार' है; जो 'विशाल भारत' (कलकत्ता) के मार्च 1944 के अंक में प्रकाशित हुई। आप सन् 1946 से प्रगतिवादी काव्यान्दोलन से सक्रिय रूप से सम्बद्ध रहे हैं तथा प्रगतिशील हिन्दी कविता के द्वितीय उत्थान के चर्चित हस्ताक्षर माने जाते हैं। समाजार्थिक यथार्थ के अतिरिक्त आपके अन्य प्रमुख काव्य-विषय प्रेम, प्रकृति, व जीवन-दर्शन रहे हैं। आपने छंदबद्ध और मुक्त-छंद दोनों में काव्य-सॄष्टि की है। आपका अधिकांश साहित्य 'महेंद्र भटनागर-समग्र' के छह-खंडों में एवं काव्य-सृष्टि 'महेंद्रभटनागर की कविता-गंगा' के तीन खंडों में प्रकाशित है। अंतर्जाल पर भी आप सक्रिय हैं।
4 टिप्पणियाँ
अच्छी कविता...बधाई
जवाब देंहटाएंsundar
जवाब देंहटाएंAvaneesh
उत्तम बाल गीत. गीतकार को साधुवाद.
जवाब देंहटाएंman bhavan bal geet -badahai
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.