
थकान
बीते जीवन की असफलताओं,
और घुटने के दर्द से थक ,
लेटे - लेटे अब सो जाती है ,
माँ |
वैराग्य
बीना साज - श्रृंगार के,
सूखे बालों का जूड़ा बना ,
अब दिन गुजराती है ,
माँ |
लालच
पिज्जा, बर्गर से बेखबर ,
फ्रंकी, डोसा से दूर ,
गोलगप्पे देख अब भी ललचती है,
माँ |
मौन
ऑफिस से लौटने पर ,
अपने मौन नेत्रों से देख ,
मेरी थकान दूर कर देती है ,
माँ |
6 टिप्पणियाँ
maa ke liye achhi abhivyagti hai
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना अवनीश
जवाब देंहटाएंछोटी छोटी रचनायें कितनी गहरी गहरी बातें कह जाती हैं। अति उत्तम।
जवाब देंहटाएंअच्छी क्षणिकायें...बधाई
जवाब देंहटाएंbahut sunder rachnayen maa pr aap ne jo bhi likha hai sach likha hai
जवाब देंहटाएंbadhai
rachana
dular ke srigar ke saath sabse sundar lagti hai Maa...uske karan mai hu isliye budhape ke jawab k bad bhi mere liye jeeti hui Maa....
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.