
बेरोज़गार अर्जुन नौक़री की चाह लिये एकलव्य के कार्यालय पहुँचा।
काफ़ी देर इंतज़ार के बाद कार्यालय प्रमुख एकलव्य के चेम्बर से उसका बुलावा आया। अन्दर प्रवेश करते ही एकलव्य के तेज़ को देखकर अर्जुन दंग रह गया। उसका कटा हुआ अंगूठा भी वापस अपनी जगह पर था।
नौक़री पा जाने की आस में अर्जुन ने उसके समक्ष अपनी ख़राब आर्थिक परिस्थितियों का रोना, रोना शुरू कर दिया।
इस पर एकलव्य ने कहा-‘‘कल तक जो दशा मेरी थी, आज वही तुम्हारी है। जिस तरह कई वर्षों तक द्रोणवाद-अर्जुनवाद फैला हुआ था, उसी तरह आगामी कई वर्षों तक एकलव्यवाद फैला रहेगा। समानता इसी तरह से आती है।
एकलव्य के इस कथन पर अर्जुन के भीतर का अर्जुन सिर उठाने लगा, सो उसने कहा- ‘ये तो कोई बात नहीं हुई कि, चूँकि द्रोणवाद-अर्जुनवाद कई वर्षों तक फैला रहा, इसलिये एकलव्यवाद भी कई वर्षों तक फैला रहे। इसमें समानता वाली बात कहाँ है? ये तो कल तेरी बारी तो आज मेरी बारी वाली बात हुई।
अब एकलव्य के अन्दर के एकलव्य की बारी थी सो उसने कहा-‘‘गेट आऊट! गेट आऊट फॅ्राम हियर।’’
9 टिप्पणियाँ
एकलव्य और अर्जुन के माध्यम से कही गयी बात विचार योग्य है।
जवाब देंहटाएंheheheh bahut damdaar hai badhu !
जवाब देंहटाएंgood one
Avaneesh
अवसर वदी जमाना है या यों कहे जिस्की लाथी उसकी भेन्स
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएं-Alok Kataria
ऐसा ही होता है अकसर .
जवाब देंहटाएं.बहुत अच्छे...
Damdaar laghukathaa. Badhaaii Aalok jii, badhaaii.
जवाब देंहटाएंयथार्थपरक लघुकथा. इसे कोइ अन्य आदर्शपरक मोड़ देने से इसकी मारकता का ह्रास होता. धारदार कथ्य.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकटार सी मारक.... सार्थक लघु कथा
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.