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करते है लोग बगावत इक यहाँ हमारे आने से [ग़ज़ल] - दीपक 'बेदिल'


अच्छा तो हम चलते है तेरे इस शहर दीवाने से
करते है लोग बगावत इक यहाँ हमारे आने से

गुमनाम ओ पोशीदा इंसान जो जो हुए है यहाँ
वो मारे डर के नहीं निकला करते बूतखाने से

क्या बात हुई है जो करके आये हो आँखे लाल
ना लगता हमें की समझ जाओगे समझाने से

ये मुद्दा भी तेरा जिक्र भी तेरा करू हूँ दिल्ली
पहले ही उजाड़ देते है लोग घर को बसाने से

जितने पाक बदन और जितने काजी है यहाँ
सबसे कह दो की जरा दूर रहे उस दीवाने से

है बहुत नाराज हमसे और भला क्या कहिये
पर मान जावेंगे सुनो हो इक गले लगाने से

दीदा-ए-तर होकर भी झूठे ही रहोगे 'बेदिल'
भला किसको मिला है यकीन टेसुए बहाने से

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4 टिप्पणियाँ

  1. है बहुत नाराज हमसे और भला क्या कहिये
    पर मान जावेंगे सुनो हो इक गले लगाने से


    क्या बात है....बहुत अच्छे.....

    आभार और
    बधाई आपको दीपक बेदिल जी...

    जवाब देंहटाएं
  2. दीदा-ए-तर होकर भी झूठे ही रहोगे 'बेदिल'
    भला किसको मिला है यकीन टेसुए बहाने से
    Bahut hi nayaab sher apni nageenedari se apni pehchaan bana raha hai
    daad ke saath

    जवाब देंहटाएं
  3. bhot bhot shukriya aapka..
    mitti k jarre ko aasmaan bana rahe ho
    miya khud hi mout ka samaan bana rahe ho

    sar jhukaaye hue

    deepak "bedil"

    जवाब देंहटाएं

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