
हँसते - मुस्काते जीवन से क्या तेरी पहचान नहीं
दोस्त, सभी को अपने सिवा तुम मूढ़ नहीं समझो,जानो
हर कोई दुनियादारी से होता है अनजान नहीं
अपने घर की खूब हिफाज़त कर ली हैं तुमने लेकिन
सेंध लगाने वाले भी हैं शायद तुमको ज्ञान नहीं
मैले कपड़ों में जो लिपटा वो भी तो इक इन्सां है
उजले कपड़ों में जो चमका सिर्फ़ वही इन्सां नहीं
हमने देखे और सुने हैं तुम जैसे जाने कितने
प्यार - मुहब्बत के रस्तों से एक तुम्ही अनजान नहीं
चिट्टे कपड़ों में भी हमने देखे हैं भगवान बहुत
भगवे कपड़े पहन कर कोई हो जाता भगवान नहीं
काश , जमा पूंजी से तुमने कुछ तो खर्च किया होता
" प्राण " हमारी नज़रों में तुम निर्धन हो, धनवान नहीं
9 टिप्पणियाँ
अपने घर की खूब हिफाज़त कर ली हैं तुमने लेकिन
जवाब देंहटाएंसेंध लगाने वाले भी हैं शायद तुमको ज्ञान नहीं
बहुत दिनों बाद प्राण जी को पढा है। बहुत अच्छी ग़ज़ल
nice
जवाब देंहटाएं-Alok Kataria
मैले कपड़ों में जो लिपटा वो भी तो इक इन्सां है
जवाब देंहटाएंउजले कपड़ों में जो चमका सिर्फ़ वही इन्सां नहीं
बहुत अच्छी ग़ज़ल
Liked the concept of Gazal. Thanks Pran ji.
जवाब देंहटाएंतेरे मुख पर मेरे प्यारे थोड़ी भी मुस्कान नहीं
जवाब देंहटाएंहँसते - मुस्काते जीवन से क्या तेरी पहचान नहीं
दोस्त, सभी को अपने सिवा तुम मूढ़ नहीं समझो,जानो
हर कोई दुनियादारी से होता है अनजान नहीं
वाह वाह
आपकी ग़ज़लें आपके अनुभव की प्रस्तुतियाँ हैं हमेशा कुछ सीखने को ही मिला है।
जवाब देंहटाएंतेरे मुख पर मेरे प्यारे थोड़ी भी मुस्कान नहीं
जवाब देंहटाएंहँसते - मुस्काते जीवन से क्या तेरी पहचान नहीं
आपकी गज़ल हमेशा ही आकर्षित करती रही हैं...
आज भी यही हुआ...हर शेर मन की माटी से जुडा हुआ ....
आभार और बधाई...
सादर
गीता
आम आदमी से खूबसूरती से जुडती हुई गजल
जवाब देंहटाएंbrilliant- shabd nahi hai apni bhavnayen vayakt karne ke liye--badahai
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.