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यकीं मुझको भी जाने क्यों कभी उस पर नहीं आया [ग़ज़ल] - प्रेमचंद सहजावाला

वो वादा कर के भी मिलने मुझे अक्सर नहीं आया
यकीं मुझको भी जाने क्यों कभी उस पर नहीं आया

कभी सैय्याद के जो खौफ से बाहर नहीं आया
परिंदा कोई भी ऐसा फलक छू कर नहीं आया

अदालत में गए हम फैसला ईश्वर पे सुनने सब
मगर अफ़सोस सब आए फकत ईश्वर नहीं आया

बहुत आई सदाएं शहृ की मेरे दरीचे से
मगर मैं हादसों के खौफ से बाहर नहीं आया

मेरी मजबूर बस्ती में उगा तो था सुबह सूरज
वो अपनी मुट्ठियों में रौशनी ले कर नहीं आया

बहुत आए हमारे गांव में सपनों के ताजिर पर
गरीबी दूर करने वाला बाज़ीगर नहीं आया

करोड़ों देवताओं के करोड़ों रूप हैं लोगो
बदल दे ज़िंदगानी जो वो मुरलीधर नहीं आया

मकानों की कतारों में गए हम दूर तक ऐ दोस्त
चले भी थे मुसलसल पर तुम्हारा घर नहीं आया

बहुत आवाज़ दी तुझको तेरे ही घर के बाहर से
मगर अफ़सोस तू इतनी सदाओं पर नहीं आया

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13 टिप्पणियाँ

  1. बहुत आए हमारे गांव में सपनों के ताजिर पर
    गरीबी दूर करने वाला बाज़ीगर नहीं आया
    बहुत अच्छी ग़ज़ल है प्रेमचंद जी। साहित्य शिल्पी पर आपका स्वागत है।

    जवाब देंहटाएं
  2. मकानों की कतारों में गए हम दूर तक ऐ दोस्त
    चले भी थे मुसलसल पर तुम्हारा घर नहीं आया

    बहुत आवाज़ दी तुझको तेरे ही घर के बाहर से
    मगर अफ़सोस तू इतनी सदाओं पर नहीं आया

    हर शेर उम्दा है।

    जवाब देंहटाएं
  3. कोई भी कमजोर शेर नहीं है
    करोड़ों देवताओं के करोड़ों रूप हैं लोगो
    बदल दे ज़िंदगानी जो वो मुरलीधर नहीं आया

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रेमचन्द सहजावाला जी का साहित्य शिल्पी पर हार्दिक अभिनंदन। सशक्त रचना से अपनी उपस्थिति आपने दर्ज करायी है। आभार।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत खूब.... सारे शेर कमाल के हैं.. विशेषकर:

    कभी सैय्याद के जो खौफ से बाहर नहीं आया
    परिंदा कोई भी ऐसा फलक छू कर नहीं आया

    एवं

    मेरी मजबूर बस्ती में उगा तो था सुबह सूरज
    वो अपनी मुट्ठियों में रौशनी ले कर नहीं आया

    धन्यवाद,
    विश्व दीपक

    जवाब देंहटाएं
  6. Bahut hii umdaa gazal. Badhaaii bhaaii Premchand jii! Badhaaii saahitya-shilpii

    जवाब देंहटाएं
  7. Lovely and attractive one keep on writing brother...

    Raj

    जवाब देंहटाएं

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