
मर्मभेदी कटर ध्वनि कणों को छेड़ते एही दिल तक पहुँच गयी तो रहा न गया.बाहर निकलकर देखा कि एक कुत्ता लंगड़ाता-घिसटता-किकयाता हुआ सड़क के किनारे पर गर्द के बादल में अपनी पीड़ा को सहने की कोशिश कर रहा था.
हा...हा...हा...
अट्टहास करता हुआ एक सिरफिरा भिखारी उस कुत्ते के समीप आया ... अपने हाथ की अधखाई रोटी कुत्ते की ओर बढ़ाकर उसे खिलाने और सांत्वना देने की कोशिश करने लगा. तभी खाकी वर्दी में एक पुलिस सिपाही दिखाते ही दोनों सहम गये. मैंने सिपाही की ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देखा तो वह चिल्ला रहा था 'स्साले... मादर... सड़क पर ऐसे पड़े रहते हैं मानों इनके बाप की जागीर है. ... पर दो लात जमाव तभी हटते हैं.'
'अरे भाई! नाराज़ क्यों होते हो? सड़क पर न रहें तो जाएँ कहाँ? इनका घर-द्वार तो हैं नहीं.' मैंने कहा.
'भाड़ में जाएँ. इनके बाप ने मुझसे पूछ कर तो इन्हें पैदा नहीं किया था..... खुद तो मरेंगे ही मेरी भी नौकरी भी चाट लेंगे. इधर ये सूअर हटते नहीं उधर उन कुत्तों को एक पल का धैर्य नहीं है.'
'अरे, कहे गरम होते हो? कौन छीनेगा तुम्हारी नौकरी? कौन है जिसे गरिया भी रहे हो उससे और डर भी रहे हो.'
'और कौन? अपने मंत्री जी और उनका बिटुआ.'
6 टिप्पणियाँ
देश तो मंत्री जी और उनके बिटुवाओं का ही है।
जवाब देंहटाएंA truth has been written.
जवाब देंहटाएंचंद शब्दों मे आज का सच। बधाई।
जवाब देंहटाएंएक कटु सत्य से पर्दा उठाती रचना.
जवाब देंहटाएंकथा तो मारक है ही , कथा की शैली प्रसंशनीय है |
जवाब देंहटाएंअवनीश तिवारी
कौन है जिसे गरिया भी रहे हो उससे और डर भी रहे हो.'
जवाब देंहटाएं'और कौन? अपने मंत्री जी और उनका बिटुआ.
गागर में सागर भर दिया हो जैसे...
जानवर की पीर पागल समझता है
इंसान की पीर इंसान ही नहीं समझता....संवेदनाएं उकेरती एक सार्थक लघुकथा...
.आभार...आपका...
और नमन....
गीता पंडित...
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.