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जाने ऐसा क्यों होता है?
जानें ऐसा यों होता है...
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गत है नीव, इमारत है अब,
आसमान आगत की छाया.
कोई इसको सत्य बताता,
कोई कहता है यह माया.
कौन कहाँ कब मिला-बिछुड़कर?
कौन बिछुड़कर फिर मिल पाया?
भेस किसी ने बदल लिया है,
कोई न दोबारा मिल पाया.
कहाँ परायापन खोता है?
कहाँ निजत्व कौन बोता है?...
*
रचनाकार छिपा रचना में
ज्यों सजनी छिपती सजना में.
फिर मिलना छिपता तजना में,
और अकेलापन मजमा में.
साया जब धूमिल हो जाता.
काया का पाया, खो जाता.
मन अपनों को भूल-गँवाता,
तन तनना तज, झुक तब पाता.
साँस पतंग, आस जोता है.
तन पिंजरे में मन तोता है...
*
जो अपना है, वह सपना है.
जग का बेढब हर नपना है.
खोल, मूँद या घूर, फाड़ ले,
नयन-पलक फिर-फिर झपना है.
हुलस-पुलक मत हो उदास अब.
आएगा लेकर उजास रब.
एकाकी हो बात जोहना,
मत उदास हो, पा हुलास सब.
मिले न जो हँसता-रोता है.
मिले न जो जगता-सोता है...
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10 टिप्पणियाँ
बहुत सुंदर शब्दों में जीवन दर्शन करा गए आप...मनोहारी गीत...आभार और बधाई आपको....नमन...
जवाब देंहटाएंपल भर का ये रूप सलौना, क्यूँ इसमें मन बोता है,
जीवन मीते! एक सपना है, जग में आकर सोता है | -- गीता पंडित -
सुन्दर भाषा अनुपम गीत
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना
जवाब देंहटाएंआपका आभार शत-शत.
जवाब देंहटाएंसच ही शमा अनन्य होती,
अंधकार में धैर्य न खोती.
पंडित बन नीतेश कह रहा-
जीवन सागर गीता मोती.
रीते हाथ रहा जो सोता,
पाना है तो मारो गोता...
bahut smy bad geet pdhne ko mila hai nhi to log ttha kthit gjl ke pichhe pde hain
जवाब देंहटाएंhardik bdhai swikar kren
अच्छा गीत..बधाई
जवाब देंहटाएंbhut acchii rachana
जवाब देंहटाएंprabhudayal shrivastava
धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंअमित अजित हो सकें कभी हम.
दे उजियारा, मिटा सकें तम.
प्रभु से इतनी विनत प्रार्थना-
सबको सुख हो 'सलिल' अधिकतम.
प्रभु दयालु तो वेद व्यथित क्यों?
बेनामी अभिषेक कथित क्यों?
कौन बताये?, किससे पूछें??-
सुख में दुःख भी मिला निहित क्यों?
कोशिश नभ में पतंग उमंगें
'सलिल' बाँध ले श्रम का जोता...
साया जब धूमिल हो जाता.
जवाब देंहटाएंकाया का पाया, खो जाता.
मन अपनों को भूल-गँवाता,
तन तनना तज, झुक तब पाता.
साँस पतंग, आस जोता है.
तन पिंजरे में मन तोता है..
aap ke pas shbdon ka khajana hai .bhavon ki khan hai
bahut sunder
aap ko naye sal ki shubhkamnaye
badhai
saader
rachana
रचना, रचना ने कहा, दे उलाहना नित्य.
जवाब देंहटाएंकलम चली तो आ गये बरबस भाव अनित्य.
मुझको तनिक न श्रेय है, प्रभु का है आशीष.
जो चाहो तुम लो लिखा, नमन तुम्हें जगदीश..
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
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