
अपनों के आस पास है तो क्या बात है
यदि कोई उसमें खास है तो क्या बात है
मजबूरियों से जिन्दगी का वास्ता बहुत,
दिल में अगर विश्वास है तो क्या बात है
मजबूरियों से जिन्दगी का वास्ता बहुत,
दिल में अगर विश्वास है तो क्या बात है
आँखों से आँसू बह गए तो क्या बात है
बिन बोले बात कह गए तो क्या बात है
मुमकिन नहीं है बात हरेक बोल के कहना,
भावों के साथ रह गए तो क्या बात है
इन्सान बन के जी सके तो क्या बात है
मेहमान बन के पी सके तो क्या बात है
कपड़े की तरह जिन्दगी में आसमां फटे,
गर आसमान सी सके तो क्या बात है
जो जीतते हैं वोट से तो क्या बात है
जो चीखते हैं नोट से तो क्या बात है
जो राजनीति चल रही कि लुट गया सुमन,
जो सीखते हैं चोट से तो क्या बात है
4 टिप्पणियाँ
आपकी रचना का भी "क्या बात है " |
जवाब देंहटाएंएक मीठास लिए रचना के लिए well done
अवनीश तिवारी
मुम्बई
शहद की तरह हर पंक्ति अंतर में घुलती चली गई...
जवाब देंहटाएंमधुर भाव...
आभार श्यामल सुमन जी...
गीता पंडित..
अच्छी कविता....बधाई
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है -
जवाब देंहटाएंजो जीतते हैं वोट से तो क्या बात है
जो चीखते हैं नोट से तो क्या बात है
जो राजनीति चल रही कि लुट गया सुमन,
जो सीखते हैं चोट से तो क्या बात है
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