
ख़यालों में दुपट्टा रेशमी इक सरसराता है
ठिठुरती सर्द रातों में मेरे कानों को छूकर जब
हवा करती है सरगोशी बदन यह कांप जाता है
उसे देखा नहीं यों तो हक़ीक़त में कभी मैंने
मगर ख़्वाबों में आकर वो मुझे अकसर सताता है
नहीं उसकी कभी मैंने सुनी आवाज़ क्योंकि वो
लबों से कुछ नहीं कहता इशारे से बुलाता है
हज़ारों शम्स हो उठते हैं रौशन उस लम्हे जब वो
हसीं रुख़ पर गिरी ज़ुल्फ़ों को झटके से हटाता है
किसी गुज़रे ज़माने में धड़कना इसकी फ़ितरत थी
पर अब तो इश्क़ के नग़मे मेरा दिल गुनगुनाता है
कहा तू मान ऐ ’शम्सी’ दवा कुछ होश की कर ले
ख़याली दिलरुबा से इस क़दर क्यों दिल लगाता है !
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मोईन शम्सी मूलत: बरेली (उत्तरप्रदेश) के हैं तथा पिछले अट्ठारह वर्षों से दिल्ली में अध्यापन कार्य कर रहे हैं।
कविता तथा लघुकथा लेखन के साथ साथ आपनी अभिरुचि अभिनय में भी है।
11 टिप्पणियाँ
किसी का मख़मली अहसास मुझको गुदगुदाता है
जवाब देंहटाएंख़यालों में दुपट्टा रेशमी इक सरसराता है
बडा ही कोमल अहसास है।
बहुत ही बढ़िया गज़ल. मतला तो कमाल का है.
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत रेशमी गजल ... शुक्रिया
जवाब देंहटाएंअच्छी गज़ल..बधाई
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएं-Alok Kataria
आप सब क़द्रदानों का हार्दिक धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंआप सब क़द्रदानों का हार्दिक धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी ग़ज़ल, बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर....आभार...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन भाईसाब👍
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.