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ठहराव जिंदगी में दुबारा नहीं मिला [ग़ज़ल] - देवी नागरानी


ठहराव जिंदगी में दुबारा नहीं मिला
जिसकी तलाश थी वो किनारा नहीं मिला.

हरगिज़ उतारते समंदर में कश्तियां
तूफान आया जब भी इशारा नहीं मिला.

हम ने तो खुद को आप संभाला है आज तक
अच्छा हुआ किसी का सहारा नहीं मिला

बदनामियां घरों में दबे पांव ईं
शोहरत को घर कभी भी, हमारा नहीं मिला

खुशबू, हवा और धूप की परछाइयां मिलीं
रौशन करे जो शाम, सितारा नहीं मिला

खामोशियां भी दर्द से देवीपुकारतीं
हम-सा कोई नसीब का मारा नहीं मिला

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10 टिप्पणियाँ

  1. हर शेर बेहतरीन है , लाजवाब भी |

    अवनीश तिवारी

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  2. खुशबू, हवा और धूप की परछाइयां मिलीं
    रौशन करे जो शाम, सितारा नहीं मिला


    आहा...

    बहुत अच्छा लगा इस सुंदर गज़ल को पढ़ना....हर शेर पर वाह वाह कहने को मन किया...देवी नागरानी जी बधाई स्वीकार करें...और आभार..

    सस्नेह
    गीता

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सुन्‍दर भावमय पंक्तियां

    जवाब देंहटाएं
  4. Bahut hii khuubsuurat gazal ke liye aadarniiyaa Devii Naagraanii jii ko badhaaii!

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत खूब

    ठहराव जिंदगी में दुबारा नहीं मिला
    जिसकी तलाश थी वो किनारा नहीं मिला.

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही सटीक ढंग से मन के भावों को शेरों का रूप दे कर सुन्दर गजल गढी है

    जवाब देंहटाएं
  7. हम ने तो खुद को आप संभाला है आज तक
    अच्छा हुआ किसी का सहारा नहीं मिला

    वाह .... एक एक शेर दिल को छूकर निकला है. .... लाज़बाब.

    जवाब देंहटाएं
  8. Aap sabhi ki shukrguzaar hoon mere housle ko banaye rakhne ke liye..ssneh

    जवाब देंहटाएं

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